SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो तुम बहरे हो गए हो, तुम अंधे हो गए हो। अपने बच्चों को भेजना, क्योंकि उनकी तेजस्विता अभी कायम है। अपने बच्चों को भेजना, क्योंकि अभी वे हरे हैं, ताजे हैं, वे जल्दी बुद्ध को पहचान लेंगे। उनका तालमेल तत्क्षण बैठ जाएगा। अभी वे बहुत दूर नहीं गए हैं संसार में, अभी संन्यास के बहुत करीब हैं। ___ हर बच्चा संन्यासी की तरह पैदा होता है। और बहुत थोड़े भाग्यशाली लोग हैं, जो संन्यासी की तरह मरते हैं। सौ बच्चों में से सौ बच्चे संन्यासी की तरह पैदा होते हैं, फिर निन्यानबे संसारी हो जाते हैं। इसके पहले कि बच्चा संसारी हो जाए, इसके पहले कि क्षुद्र बातों को ज्यादा मूल्य देने लगे विराट के मुकाबले, इसके पहले कि रुपया ज्यादा मूल्यवान हो जाए सत्य की तुलना में, इसके पहले कि पद-प्रतिष्ठा ज्यादा मूल्यवान हो जाए प्रेम की तुलना में, भेजना बुद्धों के पास, करवाना सत्संग। क्योंकि जल्दी ही बच्चा भी विकृत हो जाएगा, जैसे तुम विकृत हो गए हो। जल्दी ही विकृत हो जाएगा, क्योंकि तुम्हारा यह पूरा समाज रुग्ण है। और सभी यहां बीमार हैं, इन बीमारों के बीच पलेगा तो बीमार हो ही जाएगा। यहां मां-बाप बीमार हैं, शिक्षक बीमार हैं, धर्मगुरु बीमार हैं, राजनेता बीमार हैं, यह दुनिया बीमारों की है, यह बड़ा अस्पताल है, यहां सब अपनी-अपनी बीमारी झेल रहे हैं, यहां थोड़ी-बहत देर शायद बच्चा अपने को बचा ले, ज्यादा देर न बचा सकेगा, जल्दी ही बीमार हो जाएगा। इसके पहले कि बीमारी उसे भी पकड़ ले, इसके पहले कि उसकी भी आंखें धुंधली होने लगें और इसके पहले कि उसके हृदय का स्वर भी दबने लगे शोरगुल में, इसके पहले कि वह प्रेम के मुकाबले धन को ज्यादा मूल्य देने लगे, आनंद के मुकाबले प्रतिष्ठा को ज्यादा मूल्य देने लगे, शांति के मुकाबले सम्मान को ज्यादा मूल्य देने लगे, सत्य के मुकाबले जो संसार की क्षुद्र चीजों को खरीदने निकल पड़े-आत्मा बेचने लगे-और दिल्ली पहुंचने में लग जाए; इसके पहले कि वह दिल्ली की यात्रा पर निकले, उसे भेजना बुद्धों के पास! तुम नहीं गए, कोई हर्ज नहीं। तुम्हारा अगर प्रेम है तो तुम जरूर भेजोगे। लेकिन नहीं, ऐसा होता नहीं। मां-बाप यही सोचते हैं कि वे प्रेम के कारण रोक रहे हैं। हम बड़े धोखेबाज हैं। हम गलत काम भी ठीक शब्दों की आड़ में करते हैं। हम बड़े कुशल हैं। हमारी बेईमानी बड़ी दक्ष है। ऐसे लोगों ने अपने बच्चों को कह रखा था कि वे कभी बुद्ध की हवा में भी न जाएं। बुद्ध की हवा में जाना भी खतरे से खाली नहीं है। उस हवा में भी कुछ है। वह हवा भी छूती है और झकझोरती है। उस हवा में भी तुम्हारे पत्तों पर जमी हुई धूल झड़ जा सकती है। उस हवा में तुम्हारे भीतर जमी हुई गंदी हवा बाहर निकल सकती है। उस हवा के झोंके में तुम्हारे भीतर नयी ताजगी और नए अनुभव का स्वर गूंज सकता 262
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy