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________________ एस धम्मो सनंतनो हृदय सत्य को सुनेंगे तो झंकृत हो सकते हैं। तुम्हारे हृदय तो टूट चुके, तुमने अपना तार उखाड़ दिया है। तुमने झूठ के साथ इतना संग-साथ किया है कि झूठ ने सब तरफ दीवाल खड़ी कर दी है। सत्य पुकारता भी रहे तो झूठ का शोरगुल तुम्हारे भीतर इतना है कि सत्य की पुकार नहीं पहुंचती। लेकिन बच्चे सरल हैं, सीधे हैं; अभी उनके बीच और सत्य के बीच दीवाल नहीं है; अभी बच्चे नए का आवाहन सुन सकते हैं, नए की चुनौती सुन सकते हैं। तो डरते होंगे लोग कि बद्ध के पास उनके बच्चे न जाएं। ऐसे भयभीत लोग स्वयं तो बुद्ध से दूर-दूर रहते ही थे, अपने बच्चों को भी दूर-दूर रखते थे। बच्चों के लिए, युवक-युवतियों के लिए उनका भय स्वभावतः और भी ज्यादा था। क्यों? क्योंकि बच्चे की स्लेट अभी खाली है। इस पर बुद्ध के हस्ताक्षर उभर आएं तो इसका जीवन कुछ और हो जाएगा। डर है कि कहीं यह बुद्ध की बात सुन न ले। क्योंकि यह सुन सकता है अभी, अभी इसके कान बहरे नहीं हुए हैं। और अभी आंखें इसकी अंधी नहीं हुई हैं। अभी इसके मन के दर्पण पर बहुत ज्यादा धूल नहीं जमी है। अभी यह बुद्ध के पास जाएगा तो उनकी छवि इसमें अंकित हो सकती है। जिन्होंने अपने दर्पण बिगाड़ लिए हैं, जिनके दर्पणों पर बहुत धूल जम गयी है, वे चले भी जाते हैं बुद्ध के पास तो कोई छवि नहीं बनती। खाली जाते हैं, खाली लौट आते हैं। __इसलिए सारी दुनिया के तथाकथित धार्मिक लोग अपने बच्चों को बड़े जल्दी से अपने ही धर्म में दीक्षित करने में लग जाते हैं। न उनके पास धर्म है, न उनके पास समझ है, न बूझ है, न उनके पास सत्य है, लेकिन जो भी असत्य का कूड़ा-करकट उनके मां-बाप उन्हें दे गए थे, वे अपने बच्चों को दे देते हैं। बड़ी जल्दी करते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को मंदिर भेजने लगते हैं, मस्जिद भेजने लगते हैं, गुरुद्वारा भेजने लगते हैं। छोटे-छोटे बच्चों के मन में वही कूड़ा-करकट जो खुद ढो रहे हैं, डालने लगते हैं। न उन्हें उस कूड़े-करकट से कोई सोना मिला है, न उन्हें आशा है कि इन्हें मिलेगा। मगर एक ही आशा बांधकर चलते हैं कि हम जिस दुनिया में रहे, हमारे बच्चे भी उसी में रहें। यह प्रेम है? ___ खलील जिब्रान ने कहा है, प्रेम का तो लक्षण यह होता है कि मां-बाप यह प्रार्थना करेंगे परमात्मा से कि हमारे बच्चे हमसे आगे जाएं; जहां तक हम नहीं जा सके, वहां जाएं; जिन पर्वत-शिखरों को हमने नहीं छुआ, हमारे बच्चे छुएं; जिन आकाश की ऊंचाइयों में हम नहीं उड़े, हमारे बच्चे उड़ें। हमारे बच्चे हमारी ही सीमा में समाप्त न हो जाएं, यह होगा प्रेम का लक्षण। लेकिन प्रेम है कहां! जिस बेटे को तुम सोचते हो मैं प्रेम करता हूं, उसको भी तुम प्रेम नहीं करते। अगर तुम प्रेम करते होते, तो तुम्हारा व्यवहार दूसरा होता। अगर तुम प्रेम करते होते तो तुम अपने बेटे को कहते कि बेटा, हिंदू मत होना, क्योंकि मैं हिंदू रहा और मैंने 260
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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