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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश बुद्ध जैसे व्यक्तियों के पास नब्बे प्रतिशत तो युवा जाते हैं, दस प्रतिशत वृद्ध जाते हैं। वे वृद्ध भी गरिमा हैं इस पृथ्वी की, वे वृद्ध ही गरिमा हैं इस पृथ्वी की । क्योंकि वे अभी भी जवान हैं। वे मौत के आखिरी क्षण तक भी अगर उन्हें पता चल जाए कि सत्य क्या है, तो सत्य के साथ खड़े होने की तैयारी रखते हैं; असत्य को छोड़ देंगे, चाहे असत्य के प्रति पूरा जीवन ही क्यों न समर्पित रहा हो। इतनी हिम्मत, इतना साहस जिसमें न हो, वह धार्मिक हो भी नहीं पाता। और इसीलिए धर्मगुरु बहुत डरे रहते हैं कि छोटे बच्चे इस तरह के खतरनाक लोगों के पास न जाएं। इधर रोज ऐसी घटना घटती है । यह कहानी कुछ उसी दिन होकर चुक गयी, ऐसा नहीं, आज भी घटती है। आज भी वैसी ही घट रही है। मैं ग्वालियर में ग्वालियर की महारानी का मेहमान था । उन्होंने मुझे सुना, उनके बेटे ने भी सुना। दूसरे दिन वे मुझे मिलने आयीं और उन्होंने मुझसे कहा, मेरा बेटा भी आना चाहता था, लेकिन मैं उसे साथ लायी नहीं; क्योंकि मुझे आपकी बातें खतरनाक मालूम होती हैं । हम तो बड़े-बूढ़े हैं, हम तो समझ लेते हैं, लेकिन छोटे बच्चे हैं, वे तो इन बातों में पड़कर भ्रष्ट हो सकते हैं। मैंने कहा, मेरी बात सही है या गलत, इसकी हम फिकर करें, छोटे-बड़ों की बात पीछे कर लेंगे। संस्कारशील महिला हैं, कहा कि नहीं, गलत तो मैं नहीं कह सकती, सही ही होंगी, मगर बड़ी दूर की है। हमारे काम की नहीं। मैंने कहा, सत्य कितने ही दूर का हो, सदा काम का है। और असत्य कितना ही पास हो, कभी काम का नहीं। इसलिए असली सवाल दूरी और पास का नहीं है, असली सवाल तो सच और झूठ का है। उन्होंने कहा, जो भी हो, लेकिन मैं अपने बेटे को नहीं लायी हूं, क्योंकि मुझे डर लगा कि वह बिगड़ सकता है। मैंने कहा, तुम क्यों आ गयी हो ? तुम्हें डर नहीं है बिगड़ने का ? इसका मतलब यह हुआ कि क्या तुम मर चुकी हो, जीवित नहीं हो अब? तुम्हें सत्य की आवाज सुनकर हृदय में कोई स्पंदन नहीं होता ? इसलिए तुम चली आयी हो, क्योंकि अब तुम कायर हो गयी हो। अब तुमने जिंदगी से बहुत समझौता कर लिया। अभी तुम्हारा बेटा समझौते नहीं किया है। अभी तुम्हारे बेटे का जीवन शेष है। अभी तुम्हारे बेटे के भीतर प्राण हैं। इससे तुम डर रही हो । यह सदा होता रहा है। मैं कई बस्तियों में रहा हूं; जहां रहा हूं वहीं यह घटना रोज घटती रही है। लोग अपने बच्चों को मेरे पास आने से रोकते हैं। खुद चाहे कभी आ भी जाएं, मगर बच्चों को आने से रोकते हैं। क्योंकि खुद पर तो उन्हें भरोसा है। भरोसा इस बात का है कि हम तो गए, भरोसा इस बात का है कि हमने तो समझौता गहरा कर लिया है, भरोसा इस बात का है कि हम तो असत्य में रच-पच गए हैं, उन्हें कोई डर नहीं है। लेकिन बच्चे ? अभी बच्चे सरल हैं, साफ-सुथरे हैं, अभी बच्चों का कोई पक्षपात नहीं है, अभी बच्चों ने धारणाएं नहीं बनायीं, अभी उनके 259
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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