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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश तुम्हारा सत्य किसी की बात सुनकर हिल जाएगा? तुम्हारा सत्य किसी की बात सुनकर उखड़ जाएगा? तो ऐसे दो कौड़ी के सत्य को क्या मूल्य दे रहे हो! जो किसी की बात सुनकर उखड़ जाएगा, वह तुम्हें जीवन के भवसागर के पार ले जा सकेगा? जो सुनने से बिखर जाता है, वह तुम्हारी मौत में तुम्हारा साथी हो सकेगा? वह बिखरता इसीलिए है कि तुम्हारे भीतर संदेह छिपा है। तुम भी जानते हो कि सत्य तो यह नहीं है। तुम भी किसी तल पर पहचानते हो कि सत्य तो यह नहीं है। मगर इस बात को छिपाए हो, दबाए हो, अंधेरे में सरका दिया है। अचेतन मन में दरवाजे बंद करके ताला लगाकर डाल दिया है। लेकिन तुम जानते हो, ताला तुम्हीं ने लगाया है। तुम्हें पता है कि अगर सत्य की किरण आएगी, तो मेरी बात झूठ हो जाएगी। इसलिए सत्य की किरण से बचो। अपने अंधेरे को सम्हालो और सत्य की किरण से बचो। सत्य अभय करता है और असत्य भयभीत करता है। वे घबड़ाते थे लोग, क्योंकि एक बात तो साफ थी कि कुछ है बुद्ध के पास, कुछ धार, कुछ प्रखरता, कि बुद्ध की मौजूदगी में असत्य असत्य दिखायी पड़ने लगता है, सत्य सत्य दिखायी पड़ने लगता है। कि बुद्ध की मौजूदगी में सम्यक-दृष्टि पैदा होती है। लेकिन हमने असत्य के साथ बहुत से स्वार्थ जोड़ रखे हैं, हमारे न्यस्त स्वार्थ हैं। उन न्यस्त स्वार्थों को छोड़ने की हमारी तैयारी नहीं है। तो यही उचित है कि सत्य सुनो ही मत, अन्यथा जमी-जमायी दुनिया बिखर जाए। एक व्यवस्था बनाकर बैठ गए हैं, एक सुरक्षा है। सब ठीक-ठाक चल रहा है। इसे क्यों गड़बड़ करना? इस अज्ञात को क्यों निमंत्रण देना? इस अनजान को क्यों बलाना घर में? मत लाओ इस अतिथि को। किसी तरह तुमने अपने घर को जमा लिया है, अब नए को लाकर और फिर से जमाना पड़ेगा। तो जैसे-जैसे लोग बूढ़े होने लगते हैं, वैसे-वैसे भय ज्यादा पकड़ने लगता है। अब उम्र भी ज्यादा नहीं रही, मौत भी करीब आती है...। . मैं अपने गांव जाता हूं-जाता था तो मेरे एक शिक्षक हैं, स्कूल में मुझे पढ़ाया, उनसे मुझे लगाव है, तो उनके घर मैं सदा जाता था। एक बार गांव गया तो उन्होंने अपने बेटे को भेजा और मुझे कहलवाया कि मेरे घर मत आना। मैं थोड़ा हैरान हुआ। मैंने उनके बेटे को पूछा कि बात क्या है? तो उन्होंने कहा कि वे रोते थे जब उन्होंने यह बात कहलवायी, दुखी थे, लेकिन उन्होंने कहलवाया कि मेरे घर मत आना। तो मैंने कहा कि तुम उनसे कहना, एक बार और आऊंगा, बस एक बार। तो मैं गया उनके घर। मैंने पूछा कि बात क्या है? उन्होंने कहा, बात अब तुम पूछते हो तो तुमसे कह दूं। अब मैं बूढ़ा हुआ, तुम्हारी बातें सुनकर मेरी आस्थाएं डगमगाती हैं। अब यहां मौत मेरे करीब खड़ी है, अब तुम्हारी बात सुनकर मैं कोई नयी बात शुरू कर भी नहीं सकता, नयी बात शुरू करने के लिए समय भी मेरे पास 257
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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