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________________ एकमात्र साधना-सहजता किसी को मैं कभी उपवास के लिए भी हां भर देता हूं कि करो। क्योंकि मैं देखता हूं, उस आदमी के लिए उपवास जितना सहज है और कोई सहज नहीं। मगर मेरा कारण सदा सहजता होती है। मैं देख लेता हूं, कौन सी बात सहज है। कौन सी बात तुम्हारे साथ छंदबद्ध हो जाएगी। कौन सी बात के साथ तुम सरलता से चल सकोगे। तो तुम जो भी करते हो, मैं उसी में से तुम्हारा मार्ग खोजता हूं। मैं कहता हूं, तुम जहां हो वहीं से परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है। तुम्हें अन्यथा होने की जरूरत नहीं है, वहीं से यात्रा शुरू कर दो। जैसे हो वैसे ही यात्रा शुरू कर दो। बुद्ध की बात कठोर थी। बुद्ध कहते, पहले तुम्हें ऐसा होना पड़ेगा, तब परमात्मा की यात्रा शुरू होगी। फर्क समझना। ___ बुद्ध कहते थे कि पहले तुम्हें एक खास चौरस्ते पर आना पड़ेगा, उस चौरस्ते से रास्ता जाता है सत्य की तरफ। और उस चौरस्ते और तुम्हारे बीच हो सकता है बहुत फासला हो। वज्जीपुत्त और चौरस्ते के बीच बहुत फासला रहा होगा। वह वहां तक पहुंच नहीं पा रहा था। मैं कहता हूं कि तुम उस चौरस्ते पर हो ही, जहां से रास्ता जाता है। इसलिए तुम्हें किसी रास्ते को तय करके रास्ते पर नहीं आना है, रास्ते पर तो तुम हो ही, और वहीं जो तुम्हारे पास उपलब्ध है, उसी सामग्री का ठीक-ठीक उपयोग कर लेना है। तो मैं शराबी को शराब तक छोड़ने को नहीं कहता। छूट जाती है यह दूसरी बात है-अभी तरु ने दो दिन पहले अपनी बोतल मेरे पास भेंट करवा दी-छूट जाती है यह दूसरी बात है, मगर मैंने कभी उससे कहा नहीं था। अब उसने अपने आप भेज दी है बोतल, खुद जाने! वापस चाहे, मैं वापस दे सकता हूं। मुझे शराब की बोतल से कुछ झगड़ा नहीं है। शराब की बोतल का क्या कसूर! उसने तो कई दफा मुझसे पूछा है कि भगवान कह दें-और मैं जानता था कि मैं कह दूं तो वह छोड़ेगी भी, मानेगी भी, मेरे कहने की ही प्रतीक्षा थी, लेकिन मैंने कभी उससे कहा नहीं कि छोड़ दे। क्योंकि मेरे कहने से अगर छोड़ दी, तो कठिन हो जाएगी। मेरे कहने से छोड़ दी, तो जबर्दस्ती हो जाएगी। मैं जबर्दस्ती का पक्षपाती नहीं हूं। मैं धीरज रख सकता हूं। मैंने प्रतीक्षा की—छूटेगी, किसी दिन छूटेगी। अपने से जब छूट जाए तो मजा है, तो बात में एक सौंदर्य है। ___अब उसने खुद ही अपने हाथ से बोतल मेरे पास भेज दी है। अब मैं बोतल उसकी सम्हालकर रखे हुए हूं, कहीं जरूरत पड़े उसको, फिर? तो मैं सदा वापस देने को तैयार हूं। निःसंकोच भाव से बोतल वापस मांगी जा सकती है। और मेरे मन में तब भी निंदा नहीं होगी कि तुमने बोतल वापस क्यों मांगी? क्योंकि मेरी सारी चेष्टा यहां यही है कि तुम जितने सहज हो जाओ, जितने सरल हो जाओ, तुम्हारी सरलता से ही सुगंध उठने लगेगी, तुम्हारी सरलता से ही तुम सत्य की तरफ पहुंचने लगोगे। 249
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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