________________
एस धम्मो सनंतनो
पछा है सुभाष ने।
1. पहली तो बात, यदि तुम स्वीकार कर लो कि मैं भिक्ष वज्जीपत्त जैसा ही हूं, तो तुम वज्जीपुत्त जैसे न रहे। फर्क शुरू हो गया। बड़ा भेद आ गया। जिसने जाना कि मैं अज्ञानी हूं, उसके ज्ञान की शुरुआत हुई। जिसने जाना कि मैं मूढ़ हूं, अब मूढ़ता टूट जाएगी। जिसने समझा कि मैं अंधेरे में हूं, वह प्रकाश की खोज में लग ही गया। इसी समझ के साथ पहला कदम उठ ही गया। ____ यह समझ लेना कि मैं भिक्षु वज्जीपुत्त जैसा हूं, संन्यासी हूं लेकिन संसार में मेरा लगाव है, कीमती बात है। यही तो वज्जीपुत्त को पता नहीं था कि वह संन्यासी है और संसार में उसका लगाव है। यही उसे पता चल जाता तो फर्क हो गए होते। यह तुम्हें पता चला। ____ इसीलिए तो वज़्जीपुत्त की कथा कही है कि तुम्हें पता चले। और भी हैं यहां जो वज्जीपुत्त जैसे हैं, पर उन्होंने नहीं पूछा, सिर्फ सुभाष ने पूछा है। तो कथा सुभाष तक पहुंची है, सुभाष को लाभ हुआ। बाकी ने सुना होगा, उन्होंने कहा कि है किसी की कथा, कोई हुआ होगा वज्जीपुत्त, रहा होगा नासमझ, कि संन्यासी हो गया और संसारी बना रहा, हम तो ऐसे नहीं! उन्होंने बात अपने पर न लगायी होगी। उन्होंने वज्जीपुत्त की बात वज्जीपुत्त की ही रहने दी होगी। वे चूक गए। सुभाष गुणी है। उसने स्वीकार किया कि मैं वज्जीपुत्त जैसा हूं। इसी स्वीकृति में भेद पड़ना शुरू हुआ।
और दूसरी बात सुभाष ने कही है, लेकिन मैं भागने की तैयारी में नहीं हूं।' वह तुम कर न सकोगे। कई कारणों से।
एक तो सुभाष आलसी। भागने के लिए तो थोड़ा सा, आदमी चाहिए न कि जरा...भागने में भी तो कुछ करना पड़ता है। तुम्हारा आलस्य तुम्हारा भाग्य है। तुम भाग न सकोगे। इससे आलस्य का लाभ है, घबड़ाना मत। आलसी न होते तो शायद भाग जाते। सुभाष पक्के आलसी हैं। आलसी-शिरोमणि किसी दिन बन सकते हैं। अष्टावक्र की सुनो तुम, लाओत्से की गुनो तुम, आलस्य को ही रूपांतरित करो साधना में, भागना-वागना तुमसे होने वाला नहीं है। भागने के लिए सक्रियता चाहिए, कर्मठता चाहिए, वह तुम्हारे बस की बात नहीं है।
दूसरी बात, बुद्ध से भागना जितना आसान था उतना आसान मेरे पास से भागना नहीं है। बुद्ध कठोर थे। कठोर इस अर्थ में कि उनकी प्रक्रिया कठिन थी। कठोर थे इस अर्थ में कि उनका मार्ग तपश्चर्या का मार्ग था। मैं कठोर नहीं हूं। मेरा मार्ग सुगम है, तपश्चर्या का नहीं है। मेरा मार्ग सहजता का है। हां, कभी-कभी जब मैं देखता हूं, किसी व्यक्ति को तपश्चर्या का मार्ग ही ठीक पड़ेगा, तो उससे मैं कहता हूं-करो। क्योंकि यही उसके लिए सहज है। खयाल रखना मेरा कारण उससे हां भरने का। हां भरने का कारण यह नहीं कि मैं तपश्चर्या का पक्षपाती हूं, हां भरने का कारण इतना ही होता है कि उस आदमी को तपश्चर्या ही सहज है।
248