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एस धम्मो सनंतनो
फिर सभी लोगों के लिए सरलता अलग-अलग ढंग की होती है, यह खयाल रखना। किसी के लिए एक बात सरल है, दूसरे के लिए वही बात कठिन हो सकती है। अब जैसे सुभाष की बात है, सुभाष के लिए आलस्य बिलकुल सहज है। अगर यह बुद्ध जैसे व्यक्ति के हाथ में पड़ जाए, तो कठिनाई में पड़ेगा। बुद्ध इसके लिए अलग से व्यवस्था नहीं देंगे। उनकी एक व्यवस्था है, उस व्यवस्था में सुभाष को बैठना पड़ेगा। सुभाष को बड़ी कठिनाई से गुजरना पड़ेगा। मेरी कोई व्यवस्था नहीं है । मेरे लिए तुम मूल्यवान हो। तुम्हें देखकर व्यवस्था जुटाता हूं।
इस फर्क को खयाल में रखना । बुद्ध की एक व्यवस्था है, एक अनुशासन है, एक ढंग है, एक साधना-पद्धति है। मेरी कोई साधना-पद्धति नहीं है। मेरे पास तुम्हें देखने की एक दृष्टि है । तुम्हें देख लेता हूं कि तुम आलसी हो, तो मैं कहता हूं — ठीक। तो लिख देता हूं प्रिस्क्रिप्शन - लाओत्सू, अष्टावक्र; तुम इनके साथ चलो। इनसे तुम्हारी दोस्ती बनेगी, मेल बनेगा । ये लोग आलसी थे और पहुंच गए; तुम भी पहुंच जाओगे; मगर इनकी सुनो। अगर देखता हूं कि कोई आदमी बहुत कर्मठ है कि शांत बैठना उसे आसान ही नहीं होगा, तो उसे खूब नचाता हूं कि नाचो, कूदो, चीखो - चिल्लाओ, दौड़ो, योग करो-कराटे तक की व्यवस्था आश्रम में कर रखी है। कुछ लोग आ जाते हैं, जिनको कि जूझने का मन है, बिना जूझे जिनको शांति नहीं मिलेगी, उनको कहता हूं-कराटे । चलो, यही सही, कहीं से भी चलो।
इस कम्यूनिटी में मेरी आकांक्षा है कि दुनिया में जितने उपाय रहे हैं अब तक और जितने उपाय कभी और हो सकते हैं भविष्य में, वे सब उपाय उपलब्ध हो जाएं, ताकि किसी व्यक्ति को किसी दूसरे के उपाय से चलने की अड़चन में न पड़ना पड़े। वह अपना ही मार्ग चुन ले । इतने अनंत मार्ग हैं, प्रभु के इतने अनंत मार्ग हैं! प्रभु कंजूस नहीं है कि तुम एक मार्ग से आओगे तो ही स्वीकार होओगे। प्रभु के अनंत मार्ग हैं। और हर आदमी के लिए कोई न कोई मार्ग है जो सुगम होगा। मैं उस सुगम की तलाश करता हूं।
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तो तुम मेरे पास से भाग भी न सकोगे, क्योंकि मैं तुम्हें कष्ट ही नहीं देता, भागोगे कैसे? भागने के लिए भी तो थोड़ा कष्ट तुम्हें दिया जाना चाहिए। भागने के लिए भी तो तुम्हें थोड़ा सा कारण मिलना चाहिए। तुम मेरे पास से भागोगे कैसे? मेरे पास से तो केवल वे ही भाग सकते हैं जो नितांत अंधे हैं, जो नितांत बहरे हैं, जो नितांत जड़ हैं; जो न सुन सकते, न समझ सकते, न मेरा स्पर्श अनुभव कर सकते, जिनके जीवन में कोई संवेदना नहीं है, केवल वे ही लोग भाग सकते हैं। मगर वे रहें तो भी कोई सार नहीं है, जाएं तो भी कुछ हानि नहीं है— हानि न लाभ कुछ । रहें तो ठीक - बेकार रहना - चले जाएं तो ठीक। क्योंकि रहने से कुछ मिलने वाला नहीं था, जाने से कुछ खोएगा नहीं ।
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लेकिन जिनके भीतर थोड़ी भी बुद्धि है - थोड़ी भी बुद्धि है - जिनके भीतर
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