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एस धम्मो सनंतनो
पंडित-पुरोहित तुम्हारा नौकर-चाकर है, तुम्हें नहीं बदल सकता। तुम जो चाहते हो, वही कर देता है। तुम्हारी चाह से जो चलता है, वह तुम्हें नहीं बदल सकता।
केवल संतों के साथ बदलाहट संभव है। क्योंकि तुमसे उन्हें कुछ लेना-देना नहीं है। तुम्हारी प्रशंसा की भी अगर उनको जरूरत है, तो तुम समझना कि तुम गलत आदमी के पास हो। तुम्हारी स्तुति की भी मांग है, तो तुम समझना कि यहां कुछ होने वाला नहीं है। उस आदमी को खोजना, जिसको तुमसे कुछ भी नहीं लेना है— न तुम्हारी स्तुति, न तुम्हारी प्रशंसा; जो तुम्हारी चिंता ही नहीं करता, जो तुम्हारे मंतव्यों की भी फिकर नहीं करता; तुम उसे आदर देते हो कि अनादर, इसकी भी फिकर नहीं करता, तुमसे कुछ प्रयोजन ही नहीं रखता। ऐसे किसी आदमी के पास अगर बैठना सीख लिया, तो शायद तुम्हें ईश्वर की हवा का झोंका धीरे-धीरे लगना शुरू हो जाए । जिसकी खिड़की खुली है, उसके पास बैठने से तुम्हें भी हवा का झोंका लगेगा। सदगुरु खोजना।
पांचवां प्रश्न :
भगवान, कल आपने भगवान बुद्ध के जीवन में सुंदरी परिव्राजिका के प्रसंग पर प्रकाश डाला। कुछ ही वर्ष पूर्व आपसे दीक्षित, एक जापानी लड़की को माध्यम बनाकर पत्रों और समाचार पत्रों के जरिए पूरे देश में आपके विरुद्ध जो कुत्सित प्रचार किया गया था, क्या वह भी पंडितों, पुरोहितों और तथाकथित महात्माओं का करिश्मा था ? आप भी तो उस पर चुप ही रहे थे। क्यों ? और उसकी परिणति क्या हुई ?
पूछा है आनंद मैत्रेय ने ।
पहली तो बात, और ज्यादा जानना हो उस संबंध में, तो या तो श्री सत्य साईंबाबा या बाबा मुक्तानंद से पूछना चाहिए । विस्तार उन्हें मालूम है । और मैं तब भी चुप रहा था और अब भी चुप रहूंगा। कुछ बातें हैं जो केवल चुप्पी से ही कही जा सकती हैं।
परिणति पूछते हो कि क्या हुई ?
परिणति यह हुई कि वह जापानी युवती अब आने का विचार कर रही है, वापस लौट आने का । संकोच से भरी है, डरती है, क्योंकि उसने इस पूरे षड्यंत्र में हाथ बंटाया, अब डरती है कि यहां कैसे आए ! तड़फती है आने को ।
यहां कुछ जापानी मित्र हैं, उनसे मैं कहूंगा कि वापस जापान जाओ तो उसको
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