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________________ एकमात्र साधना-सहजता अब हक्का-बक्का होने की बारी किसान की थी। अफसर ने उसे समझाया कि लेनिन का शव लाल चौक में उनके मकबरे में रखा हुआ है। लेकिन किसान अड़ा रहा, उसने कहा, मगर झंडे पर तो साफ लिखा होता है कि लेनिन जिंदा हैं, जिंदा थे और जिंदा रहेंगे। और सदा जिंदा रहेंगे। अधिकारी ने बड़े सब्र से उसे समझाना शुरू किया कि इसका अर्थ सिर्फ यह है कि लेनिन की प्रेरणा जिंदा है और वह हमारा मार्गदर्शन कर रही है। अधिकारी काफी भावावेग के साथ बोलता रहा। जब वह बोल चुका, तो किसान चुपचाप उठकर चल दिया। दरवाजे पर पहुंचकर वह पलटा और अधिकारी से बोला, अब मैं समझ गया साहब, जब आपको जरूरत पड़ती है, लेनिन जिंदा हो उठते हैं, और जब मुझे जरूरत होती है, लेनिन मर जाते हैं। __पंडित-पुजारी को तो परमात्मा की जरूरत है किसी कारण से। इसे खयाल में लेना। उन्नीस सौ सत्रह में रूस में क्रांति हुई, उसके पहले रूस ऐसा ही धार्मिक देश था जैसा भारत। बड़े चर्च थे, बड़े पादरी थे, बड़े पूजागृह थे और लोग बड़े धार्मिक थे। फिर क्रांति हो गयी और दस वर्ष के भीतर सब चर्च गायब हो गए, सब पूजा गायब हो गयी, सब पंडे-पुरोहित गायब हो गए और रूस नास्तिक हो गया। यह भरोसे की बात नहीं कि दस साल में इतनी जल्दी सब धार्मिक लोग अधार्मिक हो गए! ___एक कम्यूनिस्ट मुझसे बात कर रहा था, वह कहने लगा, आप कहिए यह कैसे हुआ? तो मैंने कहा, यह इसीलिए हो सका कि वे धार्मिक थे ही नहीं। धार्मिक होते तो इससे क्या फर्क पड़ता था कि राज्य बदल गया, राजनीति बदल गयी, कुछ फर्क न पड़ता। धार्मिक थे ही नहीं। सब झूठा धर्म था। पंडित-पुरोहित तो नौकरी में था। जब भगवान से नौकरी मिलती थी, भगवान के नाम पर नौकरी मिलती थी, भगवान की स्तुति गाता था। जब लेनिन के नाम पर नौकरी मिलने लगी, तो वह लेनिन की स्तुति गाने लगा। पहले वह कहता था, बाइबिल लिए घूमता था सिर पर, फिर दास केपिटल, मार्क्स की किताब लेकर घूमने लगा। यह वही का वही आदमी है। तब भी नौकरी में था, अब भी नौकरी में है। और जनता को न तब मतलब था, न अब मतलब है। तब जनता सोचती थी कि भगवान की पूजा करवा लेने से कुछ लाभ होगा, तो पूजा करवा लेती थी। अब सोचती है कि कम्यूनिस्ट पार्टी के झंडे पर फूल चढ़ाने से लाभ होता है, लेनिन के मकबरे पर जाने से लाभ होता है, तो यह कर लेती है। लोग धार्मिक कहां हैं? पंडित-पुरोहित झूठा है, और उसके पीछे चलने वाले लोग झूठे हैं। तुम इस झूठ में मत पड़ जाना। अगर तुम्हें सत्य की सच में तलाश हो, तो बिचवइए मत खोजना, मध्यस्थ मत खोजना, परमात्मा के सामने सीधे खड़े होना। और अगर तुम्हें लगे कि किसी के जीवन में कहीं किरण उतरी है, तो उस किरण का संग-साथ करना। संत के साथ रहोगे तो तुम्हें बदलना पड़ेगा। पंडित-पुरोहित के साथ रहोगे तो पंडित-पुरोहित तुम्हारी सेवा कर रहा है, वह तुम्हें कैसे बदलेगा? 245
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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