________________
एस धम्मो सनंतनो
और प्रार्थना प्रेम की अंतिम घटना है। तुम जब प्रेम करते हो तो खुद करते हो, नौकर-चाकर नहीं रखते, लेकिन जब प्रार्थना, तो पंडित रख लेते हो। प्रार्थना को तुम दूसरे से करवा रहे हो-नौकर-चाकर से। तो अगर तुम्हारी प्रार्थना कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचती तो कुछ आश्चर्य है!
प्रार्थना तो प्रेम है, वह तो प्रेम की परमदशा है। तुम करोगे तो ही पहुंचेगी। बिचवइयों का काम नहीं है, दलालों का काम नहीं है।
फिर दलाल की उत्सुकता तो तुमसे जो पैसा मिल रहा है उसमें है। तुम सौ रुपये देते हो तो वह आधा घंटा करता है, दो सौ देने लगो तो घंटेभर कर दे, तुम पांच सौ दे दो तो दिनभर करता रहे। और तुम बिलकुल न दो तो फिर एक दफे भी नहीं आएगा प्रार्थना करने, मंदिर की घंटी न बजेगी, पूजा का थाल न सजेगा, फूल न चढ़ाए जाएंगे। तो यह पंडित जो पूजा कर रहा है, पुरोहित जो पूजा कर रहा है, यह पूजा भगवान की है कि धन की हो रही है? तुम जब तक पैसा देते हो तब तक ठीक, तब तक भगवान है और भक्ति है और स्तुति है, सब है; और जैसे ही पैसा गया कि सब समाप्त हुआ। __ मैंने एक रूसी कहानी सुनी है। किस्सा एक बूढ़े रूसी किसान का है। सभी रूसी किसानों की तरह उसका भी जीवन कठिनाइयों से भरा था। वर्षों तक वह और उसकी बीबी अपने दो बेटों के साथ एक कोठरी में रहते थे। फिर एक बेटा फौज में चला गया और मोर्चे पर मारा गया। दूसरे बेटे ने दूर के किसी शहर में नौकरी कर ली। कुछ वक्त बाद जब बीबी भी चल बसी तो ग्राम-सोवियत ने वह कोठरी उससे छीनकर एक नवदंपति को दे दी और एक पड़ोसी के कमरे में कोने में पर्दा लगवाकर उसके रहने की व्यवस्था कर दी। सत्तर साल की जिंदगी में पहली बार किसान के दिल में विद्रोह की चिनगारी सुलगी। __ साल में दो बार, मई दिवस और क्रांति की वर्षगांठ पर गांव की सड़क झंडियों
और प्लेकार्डों से सज उठती थी, जिन पर लिखा होता था-लेनिन जिंदा हैं; लेनिन जिंदा हैं, जिंदा थे और जिंदा रहेंगे। इस बार यह शब्द पढ़कर बूढ़े किसान के मन में आया कि क्यों न मास्को जाकर सर्व शक्तिमान लेनिन से ही कमरा वापस दिलवाने की प्रार्थना करूं! वैसे जीवनभर कभी वह अपने गांव से चंद मील से ज्यादा दूर नहीं गया था। मगर उसने कुछ मांगकर, कुछ उधार लेकर किराया जुटाया और रेल में चढ़कर मास्को जा पहुंचा। __मास्को में भी पूछताछ करता हुआ सौभाग्य से कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के एक बड़े पदाधिकारी के सामने हाजिर हो गया। उसे सारा किस्सा सुनाकर बोला, मुझे लेनिन साहब से मिलवा दीजिए, ताकि मैं उनसे कहूं कि वे खुद मेरा कमरा मुझे वापस दिलवाएं। अधिकारी हक्का-बक्का रह गया। फिर अपना आश्चर्य छिपाकर उसने किसान को बताया कि लेनिन तो कभी के मर चुके हैं।
244