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एकमात्र साधना-सहजता
कार्ल मार्क्स ने कहा है कि धर्म अफीम का नशा है। यह बात निन्यानबे प्रतिशत सही है। यह पंडित-पुरोहित के द्वारा जो धर्म चलता है, उसके बाबत बिलकुल सही है। धर्म अफीम का नशा है। लेकिन यह सौ प्रतिशत सही नहीं है, इसलिए मैं मार्क्स से राजी नहीं हूं। क्योंकि ऐसा भी धर्म है जो बुद्धों का है, जाग्रत पुरुषों का है। ऐसा भी धर्म है, जो उनका है जिन्होंने अनुभव किया है। अगर पंडित-पुरोहित का ही धर्म होता सौ प्रतिशत तो मार्क्स बिलकुल सही था। मार्क्स सही भी है और गलत भी। सही है तथाकथित धर्म के संबंध में और गलत है वास्तविक धर्म के संबंध में।
तुम उससे सीखना अपना ईश्वर, जिसने ईश्वर जाना हो। तुम उसके पास उठना-बैठना, उसका सत्संग करना, जिसका ईश्वर से कुछ लगाव बन गया हो, जिसके हाथ में ईश्वर का हाथ छू गया हो। छू गया हो कम से कम, अगर हाथ पकड़ा
भी न हो तो भी चलेगा। क्योंकि छू गया तो बहुत देर नहीं है, पकड़ भी जाएगा। और जिसका हाथ ईश्वर के हाथ में आ गया, उसके प्राण भी ईश्वर के प्राण के साथ एक होने लगते हैं। सेतु बन गया हो जिसका, सत्संग करना उसके साथ। ___ संत को हम इसीलिए तो संत कहते हैं। संत का अर्थ होता है, जिसके जीवन में सत्य उतर आया। सत्य जिसका जीवन बन गया, वही संत। संत का सत्संग करना, पंडित-पुरोहित के पीछे मत घूमते रहना। पुरोहित तो तुम्हारा नौकर-चाकर है। तुम सौ रुपये देते हो तो आकर तुम्हारे घर में पूजा कर जाता है। तुम सौ रुपये न दोगे, नमस्कार कर लेगा! अगर कोई रुपये न देगा, पूजा-पाठ बंद हो जाएगा, कभी नहीं करेगा। उसे पूजा-पाठ से प्रयोजन नहीं है, नौकरी बजा रहा है। __एक अमीर आदमी अपने बगीचे में बैठा था, अपने एक दोस्त से बात कर रहा था। वह अमीर आदमी अपने दोस्त से बातचीत करते-करते बोला कि एक बात बताओ, स्त्री के साथ संभोग करने में कितना तो काम है और कितना आनंद है? कितना तो बोझरूप है, काम जैसा और कितना खेल जैसा है, सुखरूप? उसके मित्र ने कहा, पचास प्रतिशत तो काम है-बोझरूप, करना पड़ता है, ऐसा-और पचास प्रतिशत खेल है, सुखरूप। लेकिन वह अमीर बोला कि नहीं मैं तो मानता हूं कि नब्बे प्रतिशत काम जैसा है और दस प्रतिशत ही खेल जैसा है। ___ पास ही बूढ़ा माली काम कर रहा था। दोनों ने उसे बुलाया और कहा कि इस बूढ़े माली से पूछो, यह क्या कहता है? उससे पूछा कि बूढ़े माली, हम दोनों में विवाद चल रहा है, संभोग में कितना तो सुख है और कितना काम है ? मैं कहता हूं, नब्बे प्रतिशत काम है और दस प्रतिशत सुख है; और मेरे मित्र कहते हैं, पचास-पचास प्रतिशत, तू क्या कहता है? उस बूढ़े माली ने कहा, मालिक, सौ प्रतिशत सुख है। अगर सौ प्रतिशत न होता, तो आप हम नौकरों से करवा लेते। अगर काम ही काम होता, तो आप नौकर-चाकर रख लेते। तुम प्रेम के लिए नौकर-चाकर नहीं रखते, लेकिन प्रार्थना के लिए रखते हो।
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