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एस धम्मो सनंतनो
और तुम्हारे अधिक संन्यासी और महात्मा धोबी के गधे हैं, घर के न घाट के। संसार छूट गया है और सत्य मिला नहीं है। बाहर का सौंदर्य छूट गया और भीतर का सौंदर्य मिला नहीं है। अटक गए। रसधार ही सूख गयी। मरुस्थल हो गए। ज्यादा से ज्यादा कुछ कांटे वाले झाड़ पैदा हो जाते हों मरुस्थल में तो हो जाते हों, बस और कुछ नहीं। न ऐसे वृक्ष पैदा होते हैं कि जिनमें किसी राहगीर को छाया मिल सके, न ऐसे वृक्ष पैदा होते हैं कि रसदार फल लगें और किसी की भूख मिट सके। नहीं किसी की क्षुधा मिटती, नहीं किसी की प्यास मिटती, रूखे-सूखे ये खड़े लोग और इनकी तुम पूजा किए चले जाते हो! इनकी पूजा खतरनाक है। क्योंकि इनको देख-देखकर धीरे-धीरे तम भी रूखे-सूखे हो जाओगे। ___ इस देश में यह दुर्भाग्य खूब घटा। इस देश का संन्यासी धीरे-धीरे जीवन की करुणा से ही शून्य हो गया। उसे करुणा ही नहीं आती। लोग मरते हों तो मरते रहें। लोग सड़ते हों तो सड़ते रहें। वह तो कहता, हमें क्या लेना-देना! हम तो संसार छोड़ चुके।
संसार छोड़े, वह तो ठीक, लेकिन करुणा छोड़ चुके! तो फिर तुम बुद्ध की करुणा न समझोगे, महावीर की अहिंसा न समझोगे और क्राइस्ट की सेवा न समझोगे। इसे कसौटी मानकर चलना। करुणा बननी ही चाहिए। तो ही समझना कि संन्यास ठीक दिशा में यात्रा कर रहा है।
चौथा प्रश्नः
क्या पंडित-पुरोहितों का ईश्वर सत्य नहीं है?
| पंडित -पुरोहितों का ईश्वर उतना ही सत्य है जितने वे सत्य हैं। तुम्हारा ईश्वर
उतना ही सत्य होगा जितने तुम सत्य हो। तुम्हारा ईश्वर तुमसे ज्यादा सत्य नहीं हो सकता। तुम्हारा ईश्वर ठहरा न! तुम अगर झूठ हो, तुम्हारा ईश्वर झूठ होगा। तुम अगर झूठ हो, तुम्हारी पूजा झूठ होगी, तुम्हारी प्रार्थना झूठ होगी। तुम पर निर्भर है। तुम अगर मुर्दा हो, तुम्हारा ईश्वर मरा हुआ होगा। तुम्हारा ईश्वर तुम से अन्यथा नहीं हो सकता।
पंडित-पुरोहित का ईश्वर है ही क्या? शब्द-जाल है। शास्त्र में पढ़ी हुई बात है, जीवन में अनुभव की हुई नहीं। पंडित-पुरोहित का ईश्वर तुम्हारे शोषण के लिए है, उसके जीवन-रूपांतरण के लिए नहीं। वह मंदिर बनाता है, अपने जीवन-रूपांतरण के लिए नहीं; वह प्रवचन देता है, अपने जीवन-रूपांतरण के कारण नहीं; उसमें लाभ है, कुछ और लाभ है, तुमसे कुछ मिलता है, तुम्हें उलझाए रखता है।
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