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एकमात्र साधना-सहजता
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से समझना। --संसार के प्रति बहुत माया-मोह हो तो दया का भाव बनेगा ही कैसे? जितना संसार के प्रति माया-मोह होता है, उतना ही चित्त कठोर, हिंसक, ईर्ष्यालु हो जाता है। जितना संसार की चीजों में लगाव होता है, उतना ही तुम्हारी देने की क्षमता कम हो जाती है, दया कम हो जाती है—दया यानी देने की क्षमता।
तो तुम्हारा प्रश्न बड़ा तर्कयुक्त मालूम होता है ऊपर-ऊपर, भीतर बिलकुल पोचा है। तुम यह पूछ रहे हो कि अगर संसार के प्रति सब माया-मोह छोड़ दिया जाए, तो फिर तो करुणा-दया का भाव भी छूट जाएगा।
नहीं, इससे उलटी ही घटना घटती है। तुम जिस दिन सब माया-मोह छोड़ दोगे, उस दिन तुम पाओगे करुणा ही करुणा बची। शुद्ध करुणा बची। वही ऊर्जा जो माया-मोह बनी थी, करुणा बनती है। संसार से माया-मोह छोड़ते ही तुम्हारे हृदय में सिर्फ एक ही भाव की तरंगें रह जाती हैं-करुणा की। सारे जगत को सुखी देखने का एक भाव रह जाता है। क्यों? क्योंकि अब तुम सुखी हो गए, और कोई भाव रहेगा भी कैसे! अब तुम आनंदित हो, तुम चाहोगे कि सारा जगत ऐसे ही आनंदित हो। अब तुम्हें पता चला कि इतना आनंद हो सकता है। और मुझे हो सकता है, तो सभी को हो सकता है।
इसी करुणा के कारण तो बुद्ध बोले। नहीं तो बोलते कैसे? जब माया-मोह ही समाप्त हो गया-अगर तुम्हारी बात सही होती तो अब फिर समझाना क्या है? बोलना क्या है? अपनी आंख बंद कर ली होती, चुपचाप अपने में डूबकर समाप्त हो गए होते।
नहीं हो सके समाप्त। कोई कभी नहीं हो सका अपने में समाप्त। जब दुख में थे तो चाहे जंगल भाग गए, लेकिन जब सुख मिला तो वापस बस्ती लौट आए। बांटना था! जंगल में किसको बांटते?
इस बात को खयाल में लेना। महावीर भाग गए जंगल जब दुखी थे, बुद्ध भी भाग गए जंगल जब दुखी थे। जब दुखी थे तो भाग जाना एक अर्थ में उचित ही था, क्योंकि यहां रहते तो लोगों को दुख ही देते और क्या होता? दुख हो तो दुख ही हम देते हैं। भाग गए, हट गए यहां से, बीमार आदमी जंगल चला जाए, ताकि कम से कम औरों को तो बीमारी न फैलाए। संक्रामक रोग है तुम्हारा, अच्छा है जंगल चले जाओ। जब रोग कट जाए, स्वास्थ्य पैदा हो, तब लौट आना। क्योंकि जैसे रोग के कीटाण होते हैं, वैसे ही स्वास्थ्य के भी कीटाणु होते हैं। जैसे रोग संक्रामक होता है, वैसे ही स्वास्थ्य भी संक्रामक होता है। तो परमज्ञानी पुरुष पहले तो भागे जंगल की तरफ; और जब पा लिया, जब हीरा हाथ लगा, तब लौट आए। तब लौटना ही पड़ा, अब यह हीरा बांटना भी तो पड़ेगा।
इस हीरे के मिलते ही एक बड़ा उत्तरदायित्व भी साथ में मिलता है कि अब इसे
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