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________________ एस धम्मो सनंतनो वे जानते हैं कि जो मैं कह रहा हूं, वह ठीक है। स्वयं के तईं तो वे जानते हैं कि जो मैं कह रहा हूं, वह ठीक है। एक बार ऐसा हुआ कि मैं बंबई आया - उसी सांझ आया कलकत्ते से और रात ही मुझे दिल्ली जाना था - कृष्णमूर्ति बंबई थे । किसी ने कृष्णमूर्ति को कहा होगा कि मैं आया हुआ हूं। उन्होंने कहा, इसी वक्त मिलने का इंतजाम करो । वह मित्र भागे हुए आए। उनका नाम था परमानंद कापड़िया, गुजराती के एक संपादक थे, लेखक थे, वे एकदम भागे हुए आए। मैं जब एअरपोर्ट जाने की तैयारी कर रहा था, गाड़ी में बैठ रहा था, तब वे पहुंचे। तो मैंने कहा, यह तो बड़ा मुश्किल हो गया! जरूर मिलना हो जाता, लेकिन अभी अड़चन है, मैं लौटकर आता हूं चार दिन बाद... लेकिन दूसरे दिन सुबह कृष्णमूर्ति जाने को थे लंदन वापस, तो मिलना . नहीं हो पाया। उनकी मिलने की उत्सुकता - तत्क्षण उन्होंने कहा, इसी समय कुछ इंतजाम करो कि हमारा मिलना हो जाए - इस बात का सबूत है कि जो मैं कह रहा हूं, जो मैं कर रहा हूं, उसमें भीतर से उनकी गवाही है, लेकिन बाहर से वे गवाही नहीं दे सकते। देनी भी नहीं चाहिए। देने से तो नुकसान होगा। मुझे बड़ी सुविधा है। मुझे बड़ी छूट है। मैंने जिस ढंग की अव्यवस्था चुनी है— कि आज भक्त पर बोलता हूं, कल ध्यानी पर बोलता हूं; आज इस मार्ग पर बोलता हूं, कल उस मार्ग पर बोलता हूं- मैंने जैसी अव्यवस्था चुनी है, उस अव्यवस्था के कारण मुझे जैसी स्वतंत्रता है, वैसी आज तक कभी किसी को नहीं थी । बुद्ध सीमित, महावीर सीमित, कृष्ण सीमित, क्राइस्ट सीमित, कृष्णमूर्ति सीमित, रामकृष्ण - रमण सीमित, उन सबकी सीमाएं हैं। वे उतना ही बोलते हैं जितनी उनकी व्यवस्था में आता है। उसके बाहर की बात या तो टाल जाते हैं, या इनकार कर देते हैं। मुझे बड़ी सुविधा है। तो मैं तो कहता हूं, कृष्णमूर्ति ठीक हैं; जिसको रुचे, जरूर उनसे चले - पहुंचेगा। मगर मैं यह आशा नहीं करता कि यही कृष्णमूर्ति मेरे संबंध में कहें। कहेंगे तो उनका रास्ता अस्तव्यस्त हो जाएगा। 236 तीसरा प्रश्न : क्या भगवान बुद्ध का सार-संदेश यही नहीं है कि व्यक्ति संसार के माया-मोह को आमूल छोड़ दे ? लेकिन तब तो संसार के प्रति दया या करुणा का भाव भी कैसे रखा जा सकेगा ?
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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