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________________ एकमात्र साधना-सहजता सारा उपद्रव मोल ले लिया। क्योंकि मेरी बात में कृष्ण की बात सम्मिलित है, मेरी बात में बुद्ध की बात सम्मिलित है, मेरी बात में महावीर की बात सम्मिलित है, मेरी बात में मोहम्मद की बात सम्मिलित है। मुझे हां कहने का मतलब तो यह हुआ कि मनुष्य-जाति में जो भी चैतन्य के अब तक स्रोत हुए हैं, सबको ठीक कहना पड़ेगा। इतना खतरा कृष्णमूर्ति नहीं ले सकते। इससे उनका जो साफ-सुथरा मार्ग है, वह सब अस्तव्यस्त हो जाएगा। कृष्णमूर्ति ने एक बगिया बनायी है—साफ-सुथरी है, गणित की तरह साफ-सुथरी-मेरा हिसाब तो जंगल जैसा है। साफ-सुथरा नहीं है, जंगल साफ-सुथरा हो भी नहीं सकता। तुम एक बगीचा बनाते हो, लान लगाते हो, क्यारी सजाते हो, सब साफ-सुथरा कर लेते हो, ऐसा कृष्णमूर्ति का हिसाब है। इसलिए जिनका गणित बहुत प्रखर है और जो केवल बुद्धि से ही चल सकते हैं, उनको कृष्णमूर्ति की बात बिलकुल ठीक लगेगी। गणित जैसी है, तर्कयुक्त है। मेरा हिसाब तो जंगल जैसा है। मेरा हिसाब ज्यादा नैसर्गिक है। मैंने बहुत बनाने की कोशिश नहीं की है उसको, जैसा है वैसा स्वीकार कर लिया है, मेरा मार्ग सहज है। जिनको जंगल में जाने की हिम्मत हो, वे मेरे साथ चलें। जिनको ऊबड़-खाबड़ में भी चलने की हिम्मत हो, वे मेरे साथ चलें। जिनको अतर्क में उतरने की हिम्मत हो, वे मेरे साथ चलें। अतर्क तर्क के विपरीत नहीं है, तर्क के पार है। तो अतर्क में तर्क तो समा जाता है, लेकिन तर्क में अतर्क नहीं समाता। ऐसी अड़चन है। ___ इससे कृष्णमूर्ति पर नाराज मत होना। उनकी अपनी व्यवस्था है, उनका अपना एक अनुशासन है। उस अनुशासन को सम्हालते हुए वे मुझे हां नहीं भर सकते। मुझे हां भरें तो अनुशासन टूट जाएगा। यह मैं भी नहीं चाहूंगा कि उनका अनुशासन टूटे; उस अनुशासन से कुछ लोग चल रहे हैं, पहुंच जाएंगे। उनको अपना अनुशासन मजबूती से कायम रखना चाहिए। उनको जंगल को बगीचे में नहीं घुसने देना चाहिए। यह बिलकुल ठीक है। क्योंकि जंगल अगर बगीचे में आ गया तो तुम्हारी सब जमायी हुई व्यवस्था उखड़ जाएगी। तुम्हारा लान क्या होगा? तुम्हारी पगडंडियां तुमने बनायीं, उनका क्या होगा? तुमने जो रास्ते साफ-सुथरे किए थे, उनका क्या होगा? नहीं, जंगल को तुम्हारे बगीचे में नहीं आने देना चाहिए, उसे रोककर रखना पड़ेगा। इसलिए तुम ठीक ही कहते हो कि 'कभी-कभी तो लगता है कि वे कुछ अन्यथा कहने जा रहे हैं, लेकिन फिर टाल जाते हैं।' वे मेरे पक्ष में तो बोल नहीं सकते। यह बात सुनिश्चित है। वे मेरे विपक्ष में भी नहीं बोलते। क्योंकि जानते तो हैं वे कि जो मैं कह रहा हूं, ठीक कह रहा हूं। इसलिए विपक्ष में बोल नहीं सकते। __इस बात को खयाल में लेना। मेरे पक्ष में बोल नहीं सकते, क्योंकि उससे उन्होंने जो व्यवस्था बनायी है वह बिगड़ जाएगी। मेरे विपक्ष में बोल नहीं सकते, क्योंकि 235
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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