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________________ एस धम्मो सनंतनो बोधिधर्म, लाओत्सू, सब समा जाते हैं। तो कृष्णमूर्ति को भी मैं उसमें समा लेता हूं, कुछ अड़चन नहीं आती; मेरा घर बड़ा है। कृष्णमूर्ति रहते हैं छोटी कोठरी में। कोठरी बिलकुल भली है, कुछ गड़बड़ नहीं है। मेरे बड़े घर में कृष्णमूर्ति की कोठरी तो समा जाती है, लेकिन मेरा बड़ा घर कृष्णमूर्ति की कोठरी में नहीं समा सकता। कृष्णमूर्ति हीनयानी हैं, मैं महायानी हूं। कृष्णमूर्ति की डोंगी है छोटी सी-डोंगी जानते हो न, छोटे गांवों में ज्यादा से ज्यादा एकाध आदमी बैठकर चला लेता है, मछली मार आया-मेरा पोत बड़ा है, बड़ा जहाज है, महायान। उसमें आओ सब दिशाओं से लोग, सब तरह के लोग, सब शास्त्रों को मानने वाले, सब सिद्धांतों को मानने वाले, सबके लिए जगह है। इसलिए। ___कृष्णमूर्ति बिलकुल सही हैं, लेकिन कृष्णमूर्ति का एक बहुत संकीर्ण रास्ता है। उस रास्ते से पहुंच जाओगे—जो चलते हैं, उनको मैं कहता नहीं कि छोड़ो-जरूर पहुंच जाओगे, चलते रहो, वह रास्ता पहुंचाता है, लेकिन पगडंडी जैसा है। पगडंडी भी पहुंचाती है। लेकिन इतना मैं कहना चाहता हूं कि ऐसा मत सोचना कि उस रास्ते पर जो नहीं चल रहे हैं, वे कोई भी नहीं पहुंचते। वे भी पहुंच जाते हैं। राजपथ पर चलने वाले भी पहुंच जाते हैं। सिर्फ राजपथ ही है, इस कारण नहीं पहुंचते, ऐसा मत सोच लेना। तो मेरी और कृष्णमूर्ति की स्थिति भिन्न-भिन्न है। मैं तो उनकी मजे से स्तुति कर सकता हूं, मुझे कुछ अड़चन नहीं है, मेरी बात के विपरीत उनकी बात नहीं पड़ती है। लेकिन वे मेरी स्तुति नहीं कर सकते हैं, क्योंकि मेरी बात उनके विपरीत पड़ जाएगी। उन्होंने जो एक साफ-सुथरा सा रास्ता बनाया है, अगर वे एक दफे भी कह दें कि मैं ठीक कह रहा हूं, तो उनका सारा रास्ता गड़बड़ हो जाएगा। क्योंकि मैंने तो सारे रास्तों को ठीक कहा है, मुझको तो वही ठीक कह सकता है जो सारे रास्तों को ठीक कहे-खयाल रखना। मैं तो किसी रास्ते को गलत कहता नहीं हूं। इतनी समायी कृष्णमूर्ति की नहीं है। ___इसमें मैं कुछ यह भी नहीं कह रहा हूं कि इसमें कुछ गलती है। अपनी-अपनी मौज है। कुछ लोगों को पगडंडी से चलने में मजा आता है, हर्जा कुछ भी नहीं है। मजे से चलें। जो थक गया हो अपनी डोंगी में और पगडंडी पर चलते-चलते, उसको मैं कहता हूं कि अगर थक गए हो तो घबड़ाओ न, जहाज में सम्मिलित हो जाओ, तुम्हारी डोंगी भी ले आओ, उसको भी रख लो। कभी तुम्हारी मर्जी हो तो फिर अपनी डोंगी तैरा देना, फिर उतर जाना। तुम्हारी पगडंडी भी समा जाएगी इस बड़े रास्ते पर, उसको भी ले लो साथ। किसी दिन थक जाओ भीड़-भाड़ से, बड़े रास्ते के शोरगुल-उत्सव से, अपनी पगडंडी लेकर अलग उतर जाना। कृष्णमूर्ति को अड़चन है। वे मेरी बात को ठीक नहीं कह सकते हैं। कहेंगे तो उनका सारा रास्ता डगमगा जाएगा। मेरी बात को ठीक कहने का मतलब तो है कि 234
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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