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________________ एस धम्मो सनंतनो लिए बड़ा छोटा सा प्रयोग है, लेकिन उसमें बड़ी संभावना निहित है। ___ मुझसे लोग आकर पूछते हैं कि आप लोगों को क्या बना रहे हैं? एक ईसाई मिशनरी ने मुझसे आकर पूछा कि अनेक ईसाई आपके पास आते हैं, आप इनको हिंदू बना रहे हैं? मैंने कहा, मैं खुद ही हिंदू नहीं तो इनको कैसे हिंदू बनाऊंगा? तो उसने पूछा, आप कौन हैं? मैं सिर्फ धार्मिक हूं, इनको धार्मिक बना रहा हूं। और इनको मैं इनके गिरजे से तोड़ नहीं रहा हूं, वस्तुतः जोड़ रहा हूं। मेरे पास आकर अगर ईसाई और ईसाई न हो जाए, तो मेरे पास आया नहीं। मुसलमान अगर और मुसलमान न हो जाए, ठीक पहले दफा मुसलमान न हो जाए, तो मेरे पास आया नहीं। हिंदू मेरे पास आकर और हिंदू हो जाना चाहिए। मेरा प्रयोजन बहुत अन्यथा है। वे पुराने दिन गए! वह पुराने आदमी की संकीर्ण-चेतना गयी! ___ पर महावीर और बुद्ध चाहते भी तो यह नहीं कर सकते थे। क्योंकि मैं जानता हूं अपने तईं, कि बहुत सी बातें मैं चाहता हूं, लेकिन नहीं कर सकता हूं-तुम तैयार नहीं हो। उन्हीं थोड़ी सी बातों को करने की कोशिश में तो भीड़ छंटती गयी है मेरे पास से। क्योंकि जो भी मैं चाहता हूं करना, अगर वह जरा जरूरत से ज्यादा हो जाता है तो तुम्हारी हिम्मत के बाहर हो जाता है, तुम भाग खड़े होते हो। तुम मेरे दुश्मन हो जाते हो। थोड़े दुस्साहसी बचे हैं, इनके भी साहस की सीमा है। अगर मुझे इनको भी छांटना हो तो एक दिन में छांट दे सकता हूं, इसमें कोई अड़चन नहीं है। इनका साहस मुझे पता है, कितने दूर तक इनका साहस है। उसके पार की बात ये न सुन सकेंगे। उसके पार ये कहेंगे तो फिर अब चले! अब आप जानो! अगर मैं सारे भविष्य की बात तुमसे कह दूं, तो शायद मेरे अतिरिक्त यहां कोई सुनने वाला नहीं बचेगा। तब कहने का कोई अर्थ न होगा, उसे तो मैं जानता ही हूं, कहना क्या है! तो जब भी किसी व्यक्ति को सत्य का अनुभव हुआ है, वह अनुभव तो एक ही है, लेकिन जब वह उस अनुभव को शब्दों में बांधता है, तो सुनने वाले को देखकर बांधता है। देखने में दो बातें स्मरण रखनी पड़ती हैं—एक, जो इससे कहा जाए वह इससे बिलकुल ही तालमेल न खा जाए, नहीं तो यह विकसित नहीं होगा। और इसके बिलकुल विपरीत न पड़ जाए, अन्यथा यह चलेगा ही नहीं। इन दोनों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। कुछ तो ऐसा कहो जो इससे मेल खाता है, ताकि यह अटका रहे। और कुछ ऐसा कहो जो इससे मेल नहीं खाता, ताकि यह बढ़े। __तुम देखे न, जब सीढ़ियां चढ़ते हो तो कैसे चढ़ते हो? एक पैर एक सीढ़ी पर रखते हो, जमा लेते हो, फिर दूसरा पैर उठाते हो। एक पुरानी सीढ़ी पर जमा रहता है, दूसरा नयी सीढ़ी पर रखते हो। जब दूसरा नयी सीढ़ी पर मजबूती से जम जाता है, तब फिर तुम पुरानी सीढ़ी से पैर उठाते हो। एक पैर जमा रहे पुराने में और एक 232
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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