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________________ एस धम्मो सनंतनो मनुष्य की बिरादरी बड़ी हुई है। एक नया आकाश सामने खुला है। जैसे विज्ञान एक है, ऐसे ही भविष्य में धर्म भी एक ही होगा। एक का मतलब यह होता है कि जब दो और दो चार होते हैं कहीं भी–चाहे तिब्बत में जोड़ो, चाहे चीन में जोड़ो, चाहे हिंदुस्तान में, चाहे पाकिस्तान में-जब दो और दो चार ही होते हैं। पानी को कहीं भी गरम करो भाप बनता है चाहे अमरीका में, चाहे अफ्रीका में, चाहे आस्ट्रेलिया में सौ डिग्री पर भाप बनता है, कहीं भी ना-नुच नहीं करता, यह नहीं कहता कि यह आस्ट्रेलिया है, छोड़ो जी, यहां हम निन्यानबे डिग्री पर भाप बनेंगे! अगर प्रकृति के नियम सब तरफ एक हैं, तो परमात्मा के नियम अलग-अलग कैसे हो जाएंगे? अगर बाहर के नियम एक हैं, तो भीतर के नियम भी एक ही होंगे। विज्ञान ने पहली भूमिका रख दी है। विज्ञान एक है। अब हिंदुओं की कोई केमिस्ट्री और मुसलमानों की केमिस्ट्री तो नहीं होती, केमिस्ट्री तो बस केमिस्ट्री होती है। और फिजिक्स ईसाइयों की अलग और जैनों की अलग, ऐसा तो नहीं होता। ऐसा होता था पुराने दिनों में। तुम चकित होओगे जानकर, जैनों की अलग भूगोल है, बौद्धों की अलग भूगोल है। भूगोल! कुछ तो अकल लगाओ! भूगोल अलग-अलग! मगर वह भूगोल ही और थी। उस भूगोल में स्वर्ग-नर्कों का हिसाब था। इस जमीन की तो भूगोल थी नहीं वह। इस जमीन की भूगोल का तो कुछ पता ही न था! वह भूगोल काल्पनिक थी। सात स्वर्ग हैं किसी के भूगोल में, किसी के भूगोल में तीन स्वर्ग हैं, किसी के भूगोल में और ज्यादा स्वर्ग हैं, किसी के भूगोल में सात नर्क हैं, कहीं सात सौ नर्क हैं। कल्पना का जगत था वह। नक्शे तैयार किए थे, मगर सब कल्पना का जाल था। तो भूगोल अलग-अलग थे। लेकिन यह भूगोल कैसे अलग हो? यह वास्तविक भूगोल कैसे अलग हो? यह तो एक है। अगर यह एक है, तो अंतर्जगत का भूगोल भी अलग-अलग नहीं हो सकता। मनोविज्ञान उसके पत्थर रख रहा है, बुनियाद रख रहा है। जैसे मनुष्य के शरीर के नियम एक हैं, वैसे ही मनुष्य के मन के नियम एक हैं। और वैसे ही मनुष्य की आत्मा के नियम भी एक हैं। अभी संभावना बननी शुरू हुई कि हम उस एक विज्ञान को खोज लें, उस एक शाश्वत नियम को खोज लें। ___अतीत में जो कहा गया है, वह उसी की तरफ इशारा है, लेकिन इतना साफ नहीं था जितना आज हो सकता है। मनुष्य इस भांति कभी तैयार न था, जिस भांति अब तैयार है। भविष्य का धर्म एक होगा। भविष्य में हिंदू-मुसलमान-ईसाई नहीं होंगे, भविष्य में धार्मिक होंगे और अधार्मिक होंगे। फिर धर्म की शैलियां अलग हो सकती हैं। किसी को रुचिकर लगता है प्रार्थना, तो रुचि से प्रार्थना करे, लेकिन इससे कुछ झगड़ा नहीं है। किसी को रुचिकर लगता है ध्यान, तो ध्यान करे। और किसी को मंदिर के स्थापत्य में लगाव है, तो मंदिर जाए। और किसी को मस्जिद की बनावट में रुचि है और मस्जिद के मीनार मन को 230
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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