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एकमात्र साधना-सहजता
सभी की टूट गयीं, ऐसा भी नहीं कह रहा हूं। जिनकी टूट गयी हैं वे भविष्य के मालिक हैं, जिनकी टूट गयी हैं वे भविष्य के पुत्र हैं, जो समय के पहले आ गए हैं, उनके हाथ से भविष्य का निर्माण होगा। वे ही थोड़े से लोग भविष्य के निर्माता हैं । बाकी तो अतीत के अंधेरे में सरक रहे हैं, उनका कोई मूल्य नहीं है । जिनको भविष्य की थोड़ी समझ है, जिनकी चेतना में थोड़ा प्रकाश हुआ है, उनको एक बात दिखायी पड़नी शुरू हो गयी है कि यह पृथ्वी एक है, आदमी आदमी एक है—न गोरा और काला अलग है, न हिंदू-मुसलमान अलग है, न ब्राह्मण-शूद्र अलग है - हम सब एक इकट्ठी मानवता हैं, और मनुष्य की सारी धरोहर हमारी धरोहर है । कृष्ण हों कि क्राइस्ट, और जरथुस्त्र हों कि महावीर, और बुद्ध हों कि सरहा, सब हमारे हैं। और हमें सबको आत्मसात कर लेना है। हमें सबको पी लेना है।
और आज एक ऐसी संभावना बन रही है कि इतनी बात कहने पर कि सभी ठीक हैं, लोग विभ्रमित नहीं होंगे। सच तो यह है कि अब लोग इसी के माध्यम से गति कर सकते हैं। अब तो यह बात ही जानकर भ्रम पैदा होता है कि महावीर ठीक और बुद्ध गलत, कृष्ण ठीक और क्राइस्ट गलत । अब तो अगर कृष्ण गलत हैं तो क्राइस्ट के मानने वाले को भी शक होता है- अगर कृष्ण गलत हैं तो फिर क्राइस्ट कैसे सही होंगे! क्योंकि बात तो करीब-करीब एक ही कहते हैं। अगर महावीर गलत हैं तो फिर बुद्ध भी सही नहीं हो सकते, यह आज बौद्ध के मन में भी सवाल उठने लगा है। यह सवाल कभी नहीं उठता था ।
अब ऐसा समझो कि महावीर हैं, कृष्ण हैं, क्राइस्ट हैं, मूसा हैं, जरथुस्त्र हैं, कबीर हैं, नानक हैं, लाखों संतपुरुष हुए, इनमें से बस तुम जिसको मानते हो वही सही है, और शेष सब गलत हैं ! जरा सोचो, इस बात का अर्थ क्या होगा ? तुम नानक को मानते हो, बस नानक सही हैं, और सब गलत हैं ! आज एक नयी शंका पैदा होगी – अगर और सब गलत हैं, तो बहुत संभावना इसकी है कि नानक भी गलत हों। निन्यानबे गलत हैं और सिर्फ नानक सही हैं ! और जो निन्यानबे गलत हैं, a नानक जैसी ही बाते कहते हैं ! अब तो अगर नानक को भी सही होना है तो बाकी निन्यानबे को भी सही होना पड़ेगा। यह एक नयी घटना है।
पुराने दिनों में बात उलटी थी, अगर नानक को सही होना था तो निन्यानबे को गलत होना जरूरी था। तभी लोग, मंदबुद्धि, संकीर्णबुद्धि लोग चल सकते थे। आज हालत ठीक उलटी है। पूरा चाक घूम गया। आज हालत यह है, अगर नानक को सही होना है, तो कबीर को भी सही होना है, तो लाओत्से को भी सही होना है, तो बोकोजू को भी सही होना है। तो दुनिया में जहां-जहां संत हुए- किसी रंगरूप के, किसी ढंग के, किसी भाषा, किसी शैली के - उन सब को सही होना है, तो ही नानक भी सही हो सकते हैं। अब नानक अकेले खड़े होना चाहें तो खड़े न हो सकेंगे। अब तो सब के साथ ही खड़े हो सकते हैं।
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