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एस धम्मो सनंतनो
अब मुसलमान तो कट गया, मुसलमान का पाकिस्तान हो गया, हिंदू का हिंदुस्तान हो गया, अब किससे लड़ें? और लड़ने वाली बुद्धि तो वही है, वहीं के वहीं हैं। लड़ना तो पड़ेगा ही, नए बहाने खोजने पड़ेंगे। तो बंगाल कट गया, पाकिस्तान से भयंकर युद्ध हुआ। हिंदू-मुसलमान भी इस बुरी तरह कभी न लड़े थे जैसे मुसलमान-मुसलमान लड़े। __ और इन बीस-तीस सालों में हिंदू हजार ढंग से लड़ रहे हैं। किससे लड़ रहे हो अब? अब कोई भी छोटा बहाना कि एक जिला महाराष्ट्र में रहे कि मैसूर में रहे, बस पर्याप्त है झगड़े के लिए, छुरेबाजी हो जाएगी। कि बंबई राजधानी महाराष्ट्र की बने कि गुजरात की, छुरेबाजी हो जाएगी। कि इस देश की भाषा कौन हो—हिंदी हो, कि तमिल हो, कि बंगाली हो—कि बस झगड़ा शुरू। और तुम यह मत सोचना कि यह झगड़ा ऐसा आसान है। इसको निपटा दो-हिंदी-भाषियों का एक प्रांत बना दो कि चलो सारे हिंदी-भाषियों का एक प्रांत, सारे गैर-हिंदी भाषियों का दूसरा प्रांत-तुम पाओगे हिंदी-भाषी आपस में लड़ने लगे। क्योंकि उसमें भी कई बोलियां हैं। ब्रज भाषा है, और मगधी है, और बुंदेलखंडी है, और छत्तीसगढ़ी है, झगड़े शुरू!
आदमी को लड़ना है तो वह नए बहाने खोज लेगा। लड़ना ही है तो कोई भी निमित्त काम देता है। __ तो मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं, जिन्हें लड़ना था वे तो लड़ते ही, इसलिए उनको ध्यान में रखकर जिनको लाभ हो सकता है उनका लाभ न हो, यह कोई हितकर बात न होती।
तो बुद्ध-महावीर ने जिनका लाभ हो सकता था, उनको पुकारा; जिनको निश्चय मिल सकता था, उनको पुकारा; जिनको श्रद्धा जम सकती थी, उनको पुकारा; और उनसे कहा कि यही मार्ग है, बस यही मार्ग है। ताकि वे अटूट भाव से, प्रगाढ़ भाव से संलग्न हो जाएं, उनके मन में कोई दुविधा न रहे कि दूसरा भी कोई मार्ग हो सकता है। कुछ लोग पहुंचे। कुछ लोग महावीर के मार्ग से पहुंचे, कुछ लोग बुद्ध के मार्ग से पहुंचे।
हां, बहुत लड़ते रहे, यह लड़ने वालों की फिकर ही छोड़ दो, ये लड़ते ही रहते। ये महावीर-बुद्ध के नाम से न लड़ते, किसी और नाम से लड़ते। इन्हें लड़ना ही है।
लेकिन आज हालत बदली है, आज हवा बदली है। आज दुनिया बेहतर जगह में है। दुनिया सिकुड़ गयी है। विज्ञान ने बड़ी छोटी कर दी दुनिया। अब लोग बाइबिल भी पढ़ते हैं, गीता भी पढ़ते हैं, धम्मपद भी पढ़ते हैं। अब मैं यहां धम्मपद पर बोल रहा हं महीनों से, तो कोई ऐसा थोड़े ही है कि बुद्ध को मानने वाले ही मुझे सुन रहे हैं! हिंदू भी सुन रहा है, जैन भी सुन रहा है, मुसलमान भी सुन रहा है, ईसाई भी सुन रहा है। यह संभव नहीं था अतीत में। यह पहली दफा घटना संभव हो रही है। दुनिया करीब आयी है, भाईचारा बढ़ा है, और लोगों की क्षुद्र सीमाएं थोड़ी टूटी हैं।
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