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मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन
सभी को मार डालता है, तुमने देखा? सौ प्रतिशत मार डालता है। जो जीवित हआ, वह मरेगा ही। जीवन का कोई भी इलाज नहीं है। जीवन महामारी है। - लेकिन वैशाली के लोगों को पता नहीं था—जैसा तुमको पता नहीं है, जैसा किसी को पता नहीं है-हम महामारी के बीच ही पैदा होते हैं। क्योंकि हम मरणधर्मा दो व्यक्तियों के संयोग से पैदा होते हैं। हम मौत के बीच ही पैदा होते हैं, हम मौत के नृत्य की छाया में ही पैदा होते हैं। हम मौत की छाया में ही पलते और बड़े होते हैं। और एक दिन हम मौत की ही दुनिया में वापस लौट जाते हैं-मिट्टी मिट्टी में गिर जाती है। हम महामारी में ही जी रहे हैं। जिसे यह दिख जाता है, उसके जीवन में क्रांति का सूत्रपात होता है। __ वैशाली में दुर्भिक्ष हुआ तब लोगों को याद आयी, महामारी फैली तब याद आयी; सब उपाय कर लिए, सब उपाय हार गए, तब याद आयी। फिर उन्होंने अपने राजा को राजी किया होगा कि अब आप जाएं, भगवान राजगृह में ठहरे हैं, उन्हें बुला लाएं। शायद! शायद उनकी मौजूदगी और चीजें बदल जाएं।
खयाल रखना कि तुम चाहे शायद ही भगवान को बुलाओ तो भी चीजें बदल जाती हैं। कभी-कभी तुम संयोगवशात ही याद करो तो भी परिवर्तन हो जाता है। तुम्हारी आस्था अगर होती है तब तो बड़ा गहरा परिवर्तन हो जाता है, तुम अगर कभी संदेह से भरे हुए भी याद कर लेते हो, तो तुम्हारे संदेह को भी हिलाकर परिणाम होते हैं। तुम्हारा संदेह बाधा तो बनता है, लेकिन बिलकुल ही रोक नहीं पाता, कुछ न कुछ हो ही जाता है। पूरा सागर मिल सकता था अगर आस्था होती, अब पूरा सागर शायद न मिले, मगर छोटा-मोटा झरना तो फूट ही पड़ता है। तुम्हारे संदेह को तोड़कर भी भगवान फूट पड़ता है। इसलिए जो न बुला सकते हों आस्था से, कोई फिकर नहीं, शायद-भाव से ही बुलाएं, मगर बुलाएं तो। जो न बुला सकते हों सुख में, कोई फिकर नहीं, दुख में ही बुलाएं, मगर बुलाएं तो। आज दुख में बुलाया, कल शायद सुख में भी बुलाएंगे।।
राजा गया, राजगृह जाकर भगवान को वैशाली लिवा आया। भगवान ने एक बार भी न कहा कि अब आए। बड़ी देर करके आए। और मैं तो निरंतर यही कहता रहा हं कि जीवन दुख है और जीवन मृत्यु है और सब क्षणभंगुर है और सब जा रहा है, तुमने कभी न सुना! मेरी नहीं सुनी, महामारी की सुन ली! ___ कभी-कभी ऐसा होता है, श्रेष्ठतम पुकार हम नहीं सुनते, निकृष्ट की पुकार हमें समझ में आ जाती है, क्योंकि हम निकृष्ट हैं। हमारी भाषा निकृष्ट की भाषा है। बुद्ध बीच में खड़े होकर हमें पुकारें तो शायद हम न सुनें, दिवाला निकल जाए और हमारी समझ में आ जाए। पत्नी मर जाए और हमारी समझ में आ जाए। जुए में हार जाएं और हमारी समझ में आ जाए। और बुद्ध पुकारते रहें और हमारी समझ में न आए। हमारी एक दुनिया है, कीड़े-मकोड़ों की दुनिया है, जमीन पर सरकती हुई