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________________ एस धम्मो सनंतनो मिट्टी की पट्टी चढ़ाने से सब ठीक हो जाएगा, उपवास करने से सब ठीक हो जाएगा-क्या ये सभी ठीक कहते हैं? अगर एलोपैथी का डाक्टर तुमसे कह दे कि सभी ठीक हैं, एक ही तरफ पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं। और यही होमियोपैथी का डाक्टर भी कह दे, और यही आयुर्वेद का डाक्टर भी कह दे, और यही नेचरोपैथ कह दे, तो तुम बड़ी उलझन में पड़ जाओगे। तुम तब कहोगे, कहां जाएं? किस की सुनें? किस की मानें? सभी ठीक कहते हैं, ऐसी बात सुनकर इसकी बहुत कम संभावना है कि तुम्हारे जीवन में कुछ लाभ हो, शायद नुकसान हो जाए। क्योंकि तुम आए थे कहीं से दृढ़ निश्चय की तलाश में, तुम चाहते थे कोई आदमी जोर से टेबल पीटकर कहे कि जो मैं कहता हूं यही ठीक है। तुम संदेह से भरे हो, तुम श्रद्धा खोज रहे हो। तुम्हें ऐसा आदमी चाहिए जिसकी भाषा, जिसकी आवाज, जिसका दृढ़ निश्चय तुम में यह भरोसा जगा दे कि हां, यहां रहने से कुछ हो जाएगा। वह कहे कि यह भी ठीक है, वह भी ठीक है, चाहे यहां रहो, चाहे वहां रहो, सब जगह से पहुंच जाओगे, सब रास्ते वहीं पहुंचा देते हैं, तो बहुत संभावना यह है कि तुम किसी भी रास्ते पर न चलो, बहुत संभावना यह है कि तुम बहुत विभ्रमित हो जाओ। क्योंकि बड़ी अलग भाषाएं हैं बुद्ध और महावीर की। ___ महावीर कहते हैं, आत्मा को जानना ज्ञान है। और बुद्ध कहते हैं, आत्मा को मानने से बड़ा कोई अज्ञान नहीं। अब दोनों ठीक हैं! अगर यह और साथ में जुड़ा हो, कि महावीर कहते हों, मैं भी ठीक, बुद्ध भी ठीक; और बुद्ध कहते हों, मैं भी ठीक और महावीर भी ठीक, तुम जरा उस आदमी की सोचो, उस पर क्या गुजरेगी जो सुन रहा है! आत्मा को जानना सबसे बड़ा ज्ञान, और आत्मा को मानना सबसे बड़ा अज्ञान, ये दोनों ही अगर ठीक हैं, तो सुनने वाले को यही लगेगा कि दोनों पागल हैं। बजाय इनके पीछे जाने के, इनके साथ खड़े होने के, वह इनको नमस्कार कर लेगा! वह कहेगा, तो आप दोनों ठीक रहो, मैं चला! मैं कहीं और खोजूं जहां कोई बात ढंग की कही जाती हो, शुद्ध तर्क की कही जाती हो, समझ में पड़ने वाली कही जाती हो। लोग गणित की तरह सफाई चाहते हैं। इसी कारण महावीर को बहुत अनुयायी नहीं मिले, क्योंकि महावीर ने थोड़ी सी हिम्मत की, बुद्ध से ज्यादा हिम्मत की। बुद्ध को ज्यादा अनुयायी मिले, बुद्ध ने उतनी हिम्मत नहीं की। यह तुम चौंकोगे सुनकर। महावीर ने बड़ी हिम्मत की है। उसी हिम्मत का नाम है-स्यातवाद, अनेकांतवाद। महावीर से कोई पूछता, ईश्वर है ? महावीर कहते, है भी, नहीं भी है, दोनों भी सच है, दोनों गलत भी हैं। इसका नाम है स्यातवाद। क्योंकि महावीर कहते हैं, प्रत्येक बात को कहने के बहुत ढंग हो सकते हैं। जो बात है के माध्यम से कही जा सकती है, वही नहीं है के माध्यम से भी कही जा सकती है। नकार और विधेय, दोनों 224
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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