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एकमात्र साधना-सहजता
एक ही बात को कहने में उपयोग में लाए जा सकते हैं। दोनों एक साथ भी उपयोग में लाए जा सकते हैं। और दोनों का एक साथ इनकार भी किया जा सकता है।
जिसने भी महावीर को सुना, उसके पैर डगमगा गए। उसने कहा, स्यातवाद! हम आए हैं श्रद्धा की तलाश में, मिलता है स्यात—यह भी ठीक हो स्यात वह भी ठीक हो। लोग संदेह से पीड़ित हैं, स्यात से उनकी तृप्ति न होगी।
इसलिए महावीर को बहुत अनुयायी नहीं मिले। कितने इने-गिने जैन हैं! उनकी संख्या कुछ बड़ी नहीं हुई। और जैन-धर्म हिंदुस्तान के बाहर नहीं पहुंच सका, इसमें जैन-धर्म की कठिनाई और हिंदुस्तान की गरिमा दोनों छिपी हैं। जैन-धर्म हिंदुस्तान के बाहर नहीं पहुंच सका, क्योंकि हिंदुस्तान में ही, हिंदुस्तान जैसे विकसित देश में उस दिन थोड़े से लोग मिले जो महावीर को समझ सके। हिंदुस्तान के बाहर तो वे एक आदमी भी नहीं पा सके जो महावीर को समझ सके।
इसलिए हिंदुस्तान के बाहर महावीर को अनुयायी नहीं मिले। नहीं कि जैन नहीं गए, जैन-मुनि गए-मिश्र गए, अरब गए, तिब्बत गए, प्रमाण हैं उसके; इजिप्त तक जाने के जैन-मुनि के प्रमाण हैं। अंग्रेजी में तुमने शब्द सुना होगा-जिम्नोसोफिस्ट, वह जैनों का नाम है। जिम्नो जैन से बना। जैन-दार्शनिक, जिम्नोसोफिस्ट का मतलब होता है, जैन-द्रष्टा। ठीक मिश्र के मध्य तक जैन-मुनि गया। लेकिन कोई समझने वाला न मिला। बुद्ध को समझने वाले लोग पूरे एशिया में मिल गए। पाठ इतना कठिन नहीं था। पाठ सरल था, सुगम था।
फिर जैन-मुनियों की एक और जिद्द थी कि पाठ को जरा-भी मिश्रित नहीं होने देंगे, शुद्ध का शुद्ध रखेंगे। वह जिद्द भी मुश्किल में डाल दी। बुद्ध के भिक्षुओं में ऐसी जिद्द नहीं थी। तिब्बत में गए तो उन्होंने तिब्बत में समझौता कर लिया। तिब्बत में जो चलता था, उससे समझौता कर लिया। चीन में गए तो चीन में जो चलता था उससे समझौता कर लिया। कोरिया गए, जापान गए, जहां गए वहां जो चलता था उससे समझौता कर लिया। बुद्ध की भाषा को और वहां की भाषा को तालमेल बिठा दिया। बुद्ध-धर्म फैला, खूब फैला, सारा एशिया बौद्ध हो गया।
दोनों एक साथ थे—महावीर और बुद्ध-दोनों एक ही अनुभव को उपलब्ध हुए। महावीर के इने-गिने अनुयायी रह गए, उंगलियों पर गिने जा सकें-अब भी पच्चीस सौ साल के बाद संख्या कोई ज्यादा नहीं है, पच्चीस-तीस लाख। यह कोई संख्या हुई! पच्चीस-तीस परिवार अगर महावीर से दीक्षित होते तो अब तक उनके बच्चे पैदा होते-होते पच्चीस-तीस लाख हो जाते। बहुत थोड़े से लोग महावीर में उत्सुक हुए। नहीं कि महावीर की बात गलत थी, महावीर जरा आगे की बात कह रहे थे, दूर की बात कह रहे थे। बुद्ध का पाठ सरल है। ज्यादा लोगों को समझ में आया।
लेकिन इतनी हिम्मत तो दोनों में से कोई भी नहीं कर सका कि-महावीर भी नहीं कर सके और बुद्ध भी—कि महावीर ने कहा होता कि बुद्ध जो कहते हैं ठीक
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