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. एकमात्र साधना-सहजता
हो जाती है। कभी-कभी कोशिश करता हूं कुछ तुमसे कहने की, जो तुम नहीं समझोगे, भविष्य समझेगा। लेकिन जब तुमसे ऐसी कोई बात कहता हूं तभी मैं पाता हूं कि तुम बेचैन हो गए, तुम परेशान हो गए। जो तुम्हारी समझ में नहीं आता, उससे परेशानी बढ़ेगी, घटेगी नहीं। तुम उसके पक्ष में तो हो ही नहीं सकते—वह समझ में ही नहीं आता तो पक्ष में कैसे होओगे? तुम उसके विपरीत हो जाओगे, तुम उसके दुश्मन हो जाओगे।
तो बुद्ध ने और महावीर ने जरूर कहना चाहा होगा कि हम जो कहते हैं, एक ही बात कहते हैं-उस बात में कुछ भेद था भी नहीं, भाषा का भेद था, प्रत्यय का भेद था, धारणा का भेद था; अलग-अलग कहने के ढंग का भेद था। अलग-अलग मार्ग से पहुंचे थे वे एक ही मंजिल पर।
__ और तुम्हारी बात सच है कि अगर बुद्ध और महावीर ने कह दिया होता, तो दोनों धर्मों की हानि न होती। यह बात थोड़ी सच है, अगर यह कहा जा सकता होता-कहा नहीं जा सकता था, क्योंकि सुनने वाला कोई न था, समझने वाला कोई न था-अगर यह कहा जा सकता तो धर्मों की इतनी हानि न होती, यह भी सच है।
लेकिन यह कहने की घटना तो दो पर निर्भर होती है-कहने वाले पर और सुनने वाले पर। तुम सिर्फ बुद्ध की याद मत करो, महावीर की याद मत करो, सुनने वाले को भी खयाल में रखो। क्योंकि आकाश से नहीं बोला जाता है, शून्य से नहीं बोला जाता है, जिससे हम बोल रहे हैं उसको देखना पड़ता है। उसे इंच-इंच सरकाना होता है। उसे एक-एक कदम बढ़ाना होता है। उससे बहुत दूर की बात कह दो, वह थककर बैठ जाता है। वह घबड़ा जाता है, वह कहता है, यह मेरे बस की नहीं है। इतने दूर न मैं जा सकूँगा, न मैं जाना चाहता हूं इतने दूर। उसे तो एक इंच बढ़ाना होता है। एक इंच हिम्मत करके बढ़ जाता है, तो फिर और एक इंच आगे बढ़ने की क्षमता आ जाती है। उसे बहुत दूर की बात नहीं कही जा सकती। और जिस मंजिल को उसने जाना नहीं है, उस मंजिल की भी बात नहीं कही जा सकती।
. अगर बुद्ध और महावीर ने सुनने वालों की फिकर किए बिना ऐसा कह दिया होता कि हम जो कहते हैं एक ही है, तो सिर्फ विभ्रम बढ़ता, लोग और उलझन में पड़ जाते। तब वे सोचने लगते, अगर दोनों एक ही बात कहते हैं, तो कहते क्या हैं!
तो महावीर को तो यही कहना पड़ा कि जो मैं कहता हूं, वही सच है। और बुद्ध को भी यही कहना पड़ा कि जो मैं कहता हूं, वही सच है। इससे अन्यथा जो कहता है, गलत है। और जानते हुए कहना पड़ा कि अन्यथा भी कहा जा सकता है। __ लेकिन तुम ऐसा समझो कि तुम एक एलोपैथ डाक्टर के पास चिकित्सा के लिए गए और तुम उससे पूछो कि आयुर्वेदिक वैद्य कुछ और कहता है, वह कोई और दवा सुझाता है, और होमियोपैथी का डाक्टर कुछ और दवा सुझाता है, और नेचरोपैथी का डाक्टर कहता है दवा की जरूरत ही नहीं है, पानी में बैठे रहने से और
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