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________________ सत्यमेव जयते लज्जित नहीं होते, वे लोग मिथ्या-दृष्टि को ग्रहण करने के कारण दुर्गति को प्राप्त होते हैं।' और बुद्ध कहते हैं, लज्जा जिस बात की करनी चाहिए, लोग उसकी तो लज्जा नहीं करते; और जिसकी लज्जा नहीं करनी चाहिए, उसकी लज्जा करते हैं। अब जैसे, तुम्हारी यह फिकर नहीं होती कि मैं झूठ न बोलूं, तुम्हारी यह फिकर होती है कि किसी को यह पता न चले कि मैं झूठ बोला। यह बड़ी अजीब सी बात है। तुम्हारी यह चिंता नहीं होती कि मैं झूठ न बोलूं-वही असली बात है जिसकी लज्जा होनी चाहिए-तुम्हारी इतनी ही फिकर होती है कि किसी को पता न चले कि मैं झूठ बोला, बस। पकड़े जाओ तो लज्जित होते हो। करते वक्त लज्जित नहीं होते, पकड़े जाते वक्त लज्जित होते हो। __ लज्जित ही होना हो तो, बुद्ध कहते हैं, करते वक्त लज्जित होओ। तो पकड़ने की बात ही न उठे, पकड़ने का मौका ही न आए। जागे तो उस वक्त जब ऐसा कुछ तुम कर रहे हो, जो गलत है, असम्यक है। ____लेकिन लोग उसमें लज्जित नहीं होते। लोग लज्जित तब होते हैं जब पकड़े जाते हैं। पकड़े भी जाते हैं तो भी छिपाने की कोशिश करते हैं। सब तरह की लाग-लपेट करते हैं, सब तरह का आयोजन करते हैं, वकील खड़े करते हैं कि नहीं, ऐसा हमने किया नहीं, ऐसा हम करना नहीं चाहते थे। अगर हो भी गया हो तो अनजाने हआ होगा, चाहकर नहीं हुआ है, ऐसा हमारा अभिप्राय न था, ऐसी हमारी मनोवृत्ति न थी-हजार तर्क खोजते हैं। लज्जित उस बात से होते हैं जिससे नहीं होना चाहिए। तो भिक्षुओं को उन्होंने कहा, लज्जित वहीं हो जाना जहां से कृत्य शुरू होता है। वहीं सजग हो जाना। अभये च भयदस्सिनो भये च अभयदस्सिनो। मिच्छादिविसमादाना सत्ता गच्छंति दुग्गति।। _ 'भय न करने की बात में जो भय करते हैं और भय करने की बात में भय नहीं करते, वे लोग मिथ्या-दृष्टि को ग्रहण करने के कारण दुर्गति को प्राप्त होते हैं।' भय उस बात का करना जिसके कारण तुम्हारी जीवन चेतना खोती हो। भय उस बात का करना.जिससे तुम्हारी मूल संपदा नष्ट होती हो। भय उस बात का करना जिससे तुम ओछे और छोटे और संकीर्ण होते हो। और किसी बात का भय मत करना। लोग क्या कहते हैं, इसका भय मत करना। लोग क्या कहते हैं, लोग जानें। वह लोगों की समस्या है। इस बात की चिंता मत करना कि लोगों का मंतव्य क्या है तुम्हारे संबंध में। तुम इसी बात की चिंता करना कि तुम्हारा मंतव्य क्या है तुम्हारे संबंध में, तुम अपने संबंध 217
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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