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________________ एस धम्मो सनंतनो काफी हो जाता है। क्षण में ही तो सब भूलें हो जाती हैं। चौबीस घंटे जागा रहे। बुद्ध कहते थे, सपने में भी न चूके। बुद्ध अपने शिष्यों को ऐसी प्रक्रियाएं देते थे जिनमें सपने में भी वे जागे रहें। समझो कि दिन में तो तुमने किसी तरह सम्हाले रखा अपने को-स्त्री निकली, तुमने आंख उठाकर न देखा, तुम अपनी आंखें नीचे गड़ाए रहे; तुमने कोई तस्वीर न देखी स्त्री की, कोई फिल्म देखने न गए; ऐसी जगह से बचे जहां आकर्षण हो सकता था; धन न छुआ, पद की किसी ने बात की तो तुमने इंकार कर दिया कि भई, मुझसे मत करो, मैं संन्यासी, तुम अपने को बचा लिए। लेकिन रात, सपने में, जब तुम सो जाओगे तब, तब क्या होगी रक्षा? __ तो यह तो बाहर से रक्षा हो गयी, अब भीतर का सवाल है। दिन में तो बाहर थे दुश्मन-कोई आता था और कहता था कि महाराज, यह एक हीरा मेरे पास पड़ा है, सोचता हूं मैं क्या करूं, आप ले लें; तुमने कह दिया, भई मैं संन्यासी हूं, मन तो डांवाडोल हो भी रहा था, लेकिन तुमने कहा कि मैं संन्यासी हूं, मैं हीरा लेकर क्या करूंगा, तू अपना हीरा ले जा और दुबारा इस तरह की बात मुझसे मत करना—यह तुमने बाहर से तो रक्षा कर ली। लेकिन रात सपने में भीतर से उपद्रव शुरू होगा और तुम सोए होओगे, फिर क्या करोगे? बुद्ध कहते थे, सपने में भी होश रखे। सोते-सोते होश रखे। बुद्ध की प्रक्रिया यह थी कि जब भिक्षु सोने लगे तो एक ही बात ध्यान में रहे सोते समय कि मैं जागा हूं, मैं देख रहा हूं, मैं देख रहा हूं, और मैं पहचान रहा हूँ, और मैं पहचान रहा हूं कि यह सब सपना है और सब झूठ है। ऐसा ही भाव करते-करते रोज सोते-सोते कोई तीन महीने के बाद घटना घटती कि एक रात तुम सो जाते हो और तुम्हारे भीतर कुछ थोड़ा सा जागा रहता है; सपना आता है और तुम्हारे भीतर कोई बोलता है धीमे से कि सपना है, सावधान! जो बात तुम तीन महीने तक अपने चेतन में दोहराते रहे, वह धीरे-धीरे-धीरे रिस-रिसकर अचेतन में पहुंच जाती है। और जब अचेतन में पहुंच जाती है, तो फिर काम शुरू हो जाता है। जब भीतर और बाहर, दोनों से कोई सुरक्षित हो जाता है, तभी संन्यासी हो पाता है। 'क्षणभर भी न चूके, क्योंकि क्षण को चूके हुए लोग नर्क में पड़कर शोक करते अलज्जिता ये लज्जंति लज्जिता ये न लज्जरे। मिच्छादिविसमादाना सत्ता गच्छंति दुग्गति।। 'लज्जा न करने की बात में जो लज्जित होते हैं और लज्जा करने की बात में 216
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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