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सत्यमेव जयते
चल पड़ी, इसने कभी विचार भी न किया। धन के लोभ में आ गयी। __ और तुम ऐसा मत सोचना कि बड़ी पापी रही होगी। बिलकुल मत सोचना, सामान्य थी। ऐसे ही सामान्य लोग हैं। अगर कोई तुम्हें रुपया दे और मेरे खिलाफ कोई बात कहलवाना चाहे, तो तुम जरा अपने मन में विचार करना कल सुबह बैठकर कि तुम कितने रुपये लेकर खिलाफ बात कहने को राजी—सिर्फ विचार करना, कोई दे भी नहीं रहा है, तुम ले भी नहीं रहे हो, सिर्फ विचार करना-हजार रुपया, कि दो हजार, कि पांच हजार, कि दस हजार! जैसे-जैसे संख्या बड़ी होने लगेगी कि तुम पाओगे, रस आने लगा; कि पचास हजार, तुम कहोगे पचास हजार जरा ज्यादा हो गया; पचास हजार न लूं, जरा मुश्किल हो जाएगा; कि लाख, तुम कहोगे अब छोड़ो भी, अब जाने दो, अब तो ले लो लाख। तुम जरा देखना कि कितने रुपये-और तुम्हें कोई दे नहीं रहा है-तब तुम पाओगे कि सुंदरी तुम्हारे भीतर भी छिपी है। सामान्य है। कोई विशिष्ट बात नहीं है।
पापी कहकर मत छुट जाना। नहीं तो हमारी तरकीबें हैं ये। हम कहते हैं, अरे, बड़ी महापापी रही होगी, बुद्ध जैसे व्यक्ति पर और ऐसा लांछन लगाया! महा घोर पापी रही होगी।
ऐसा कहकर बच मत जाना। यह सामान्य मनुष्य का कृत्य है। और यह सामान्य मनुष्य सबके भीतर छिपा बैठा है। यह हो सकता है कि सबके मूल्य अलग-अलग, कोई पांच रुपये में राजी हो जाए-जुदास तीस रुपये में राजी हो गया।
मगर तीस रुपये भी उस दिन के बहुत थे, खयाल रखना। आज के तीस रुपये की बात नहीं है। नगद चांदी थी। आज के तीस रुपये तो उस जमाने के एक रुपये के मुकाबले भी नहीं हैं। उस जमाने के तीस रुपये बहुत थे। एक रुपये में जुदास के जमाने में पूरा महीना मजे से गुजर जाता था, शान से गुजर जाता था। तीस रुपये काफी थे। तीस रुपये से इतना ब्याज मिल सकता था उन दिनों कि आदमी जिंदगीभर मजे से जी लेता।
तो तुम तीस रुपये पर अपने तीस रुपये मत सोचना। वह जो नोट तीस रुपये तुम्हारे खीसे में रहते हैं, उनसे मत सोचना कि तीस रुपये में कैसे जीसस को बेच दिया! तुम जरा सोचो कि जिंदगीभर विश्राम मिल जाए, नौकरी इत्यादि की जरूरत न रही, धंधा नहीं करना, चले गए माथेरान और विश्राम कर रहे हैं जिंदगीभर, और जरा सा एक झूठ बोलना है, चूकोगे? चूकोगे तो पछताओगे। तो मन होगा कि बड़ी गलती कर रहे हो।
तुम जरा विचार करना। और कभी भी किसी को जल्दी पापी कहकर अपना छुटकारा मत कर लेना। ऐसे लेबल लगाकर हम अपने को बचा लेते हैं। सुंदरी ऐसे ही सामान्य व्यक्ति थी, जैसे तुम हो, जैसे सब हैं। आ गयी होगी धोखे में।
बुद्ध तो उसका नाम भी नहीं लेते हैं। वे तो इतना ही कहते हैं, 'जैसे ठीक से
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