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________________ एस धम्मो सनंतनो लेता है। तुम्हारा शरीर इतनी देर तक झेलने में समर्थ है। फिर ऊंट पर आखिरी तिनका रख जाता है— किसी भी दिन - और तराजू डांवाडोल हो जाता है। अमरीका में तो वे कहते हैं कि जिस आदमी को बयालीस साल की उम्र तक हार्ट अटैक न हो, वह आदमी असफल आदमी है। सफल आदमी को होता ही है। सफल आदमी का मतलब जिसने हजार तरह की बेईमानियां कीं और पकड़ा नहीं गया; हजार तरह की चोरियां कीं और पकड़ा नहीं गया। सफल आदमी का मतलब, खूब धन इकट्ठा कर लिया, दिल्ली पहुंच गया, कि वाशिंगटन पहुंच गया। सफल आदमी का मतलब कि मिनिस्टर हो गया, कि गवर्नर हो गया, कि राष्ट्रपति हो गया। सफल आदमी का मतलब ही यह होता है कि उसने बहुत से जाल फैलाए और सब जालों में से किसी तरह से निकलता चला गया। मगर तुम बाहर से निकलते चले जाओ, भीतर तुम्हारे हृदय में गांठें पड़ती जाती हैं। उन गांठों के जोड़ का नाम नर्क है। यह तो पुरानी भाषा है, इसलिए बुद्ध पुरानी भाषा बोल रहे हैं। मैं तो पच्चीस सौ साल बाद बोल रहा हूं, इसलिए पुरानी भाषा नहीं बोलूंगा। तुम अपना नर्क पैदा कर रहे हो। तुम अपना स्वर्ग भी पैदा कर सकते हो। तो बुद्ध ने कहा, जो असत्यवादी है, वह दुख में पड़ जाता है। कुसो यथा दुग्गहीतो हत्थमेवानुकंतति। सामर्थ्यं दुष्परामट्टं निरमाय उपकड्डति ।। 'जैसे ठीक से नहीं पकड़ने से कुश हाथ को ही छेद देता है, वैसे ही ठीक से नहीं ग्रहण करने पर श्रामण्य नर्क में ले जाता है । ' - अब वे कहते हैं कि — सुंदरी का नाम भी नहीं लेते हैं — इतना ही कहते हैं कि तुम यही मत सोच लेना भिक्षुओ कि तुमने संन्यास ले लिया, इतना काफी है। अगर संन्यास भी गलत ढंग से लिया, तो भी नर्क जाओगे । कोमल सी घास देखी न - कुश - इस कोमल सी घास को भी अगर गलत ढंग से तोड़ो तो हाथ कट जाता है। कोमल सी घास क्या हाथ काटेगी ? लेकिन कोमल सी घास को भी अगर तोड़ना न आता हो और तुम गलत ढंग से तोड़ लो तो हाथ कट जाए, लहू निकल आए। संन्यास जैसी सहज और शांत चीज भी अगर तुम गलत ढंग से पकड़ो, तो काट देगी, तो तुम्हें दुख में ले जाएगी, तो नर्क में गिरा देगी। संन्यास भी गलत हो सकता है, यह स्मरण रखना । और संसार भी सही हो सकता है, यह भी स्मरण रखना। ठीक और सही आदमी होते हैं, संन्यास और संसार का कोई सवाल नहीं है। अब यह सुंदरी परिव्राजिका संन्यासी हो गयी थी, बुद्ध से दीक्षित हो गयी थी। यह कैसी दीक्षा थी! यह कैसा संन्यास था ! इसे संकोच भी न लगा । यह जो करने 212
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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