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एस धम्मो सनंतनो
सत्याग्रह की कोई जरूरत नहीं है। सत्य निराग्रह भी जीतता है। जीतता ही है। सत्य की जीत अपरिहार्य है, सिर्फ समय शायद लग जाए। असत्य की हार अपरिहार्य है, शायद थोड़ी देर असत्य सिंहासन पर बैठने का मजा ले ले। मगर यह थोड़ी देर का राग-रंग है। तुम चिंता न करो। तुम इतना ही करो, शांति रखो, धैर्य रखो, ध्यान रखो। सब सहो। यह सहना साधना है। श्रद्धा न खोओ। श्रद्धा को इस अग्नि से भी गुजर जाने दो। यह अपूर्व अवसर है, ऐसे अपूर्व अवसर पर ही कसौटी होती है। इसके बाद श्रद्धा जो निखरेगी, श्रद्धा ज्योतिर्मय होकर प्रगट होगी।
और ऐसा ही हुआ। गुंडों ने रुपये ले लिए थे, सुंदरी को मार डाला था...पाप छिपते थोड़े ही, पाप बोलते। रात शराब पी ली होगी मधुशाला में जाकर, ज्यादा पी गए होंगे, फिर पी गए तो सारी बात कह गए। सब बता दिया, खोल दिया सब कि मामला क्या है। कि हमने हत्या की है, और किन ने हत्या करवायी है, और क्यों हत्या करवायी है, और गौतम निष्पाप है।
लेकिन भगवान फिर भी कुछ न बोले सो न बोले। चुप ही रहे। सत्य को स्वयं ही बोलने का उन्होंने अवसर दिया। अंत में अपने भिक्षुओं से उन्होंने इतना ही कहा कि असत्य से सदा सावधान रहना। उसके साथ कभी न जीत हुई है, न कभी हो सकती है। एस धम्मो सनंतनो। यही शाश्वत नियम है।
और तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं
अभूतवादी निरयं उपेति यो चापि कत्वा न करोमीति' चाह। उभोति ते पोच्च समा भवंति निहीनकम्मा मनुजा परत्थ।।
'असत्यवादी नर्क में जाता है, और वह भी जो कि करके भी कहता है कि नहीं किया। दोनों ही प्रकार के नीच कर्म करने वाले मनुष्य मरकर समान होते हैं।'
असत्यवादी नर्क में जाता है, इसका अर्थ होता है-उन दिनों की भाषा है यह-आज की भाषा में इसका अर्थ होता है, असत्यवादी दुख भोगता है। नर्क कोई भौगोलिक जगह नहीं है, कहीं पाताल में, जहां तुम्हें जाना पड़ेगा, नर्क तुम्हारी मनोदशा है। जब भी तुम असत्य बोलते हो, तुम नर्क में पड़ते हो। तुम अपने मन में बड़े नीचे उतर जाते हो। तुम अपने ही मन के अंधकारपूर्ण, दुखपूर्ण घाटी में डूब जाते हो। और ऐसा मत सोचना कि एक दफा नर्क जाते हो। तुम जितनी बार दिन में झूठ बोलते हो. जितनी बार बेईमानी करते हो, उतनी बार नर्क में गिरते हो। और जितनी बार सच बोलते हो, उतनी बार स्वर्ग में उठते हो। तुम थर्मामीटर के पारे की तरह ऊंचे-नीचे होते रहते हो।
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