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सत्यमेव जयते
जिसको वे धर्म कहते थे, निश्चित ही गौतम उस धर्म के विनाश के लिए उतारू थे। क्योंकि वह धर्म था ही नहीं। धर्म को तो रोज-रोज नया-नया पैदा होना पड़ता है। पुराना होते ही सड़ जाता है, मर जाता है। धर्म को तो ऐसे ही रोज-रोज पैदा होना पड़ता है जैसे तुम श्वास लेते हो। जो श्वास गयी, गयी। नयी चाहिए। यही अर्थ है एस धम्मो सनंतनो का। प्रतिपल धर्म को जीना पड़ता है। प्रतिपल उतरना पड़ता है। प्रतिपल ताजा-ताजा ही। ताजा-ताजा ही भोग लो तो भोगा। बासा-बासा इकट्ठा किया तो तुम्हारे हाथ राख लगेगी, अंगारा तो बुझ चुका। अंगारा तो वर्तमान में होता है। बुद्ध थे अंगारे की तरह, राख की तरह जो पंडित थे उन्हें बड़ी अड़चन हुई होगी।
बुद्ध परंपरावादी नहीं थे, शास्त्रों के पूजक नहीं थे, रूढ़ियों-अंधविश्वासों के पूजक नहीं थे। ___हों भी क्यों? जिसको जीवन का सत्य स्वयं दिखायी पड़ गया हो, वह क्यों चले दूसरों की बंधी-बंधायी लकीरों पर! जिसके पास अपनी आंख हो, वह क्यों पूछे दूसरों से रास्ता! और जिसके पास आंख हो, वह क्यों टटोले लकड़ी लेकर हाथ में! लकीरों पर तो वे चलते हैं जिनके पास अपनी आंख नहीं। पूछते तो वे हैं जो स्वयं जानते नहीं। जिसका अपने भीतर का दीया जल गया हो-अब उससे दूसरे पूछे!
तो बुद्ध न वेद से पूछ रहे थे, न उपनिषद से पूछ रहे थे, बुद्ध किसी से पूछ ही नहीं रहे थे। बुद्ध के पास तो अब देने को तैयार था। यद्यपि जो लोग जरा भी समझ रखते थे उनको तत्क्षण दिखायी पड़ेगा कि बुद्ध वही दे रहे हैं जो वेदों ने दिया है। अन्यथा हो भी कैसे सकता है!
शायदं भाषा बदल गयी हो-भाषा बदल जाती है-प्रतीक बदल गए हों। वेद के ऋषि संस्कृत में बोले थे, बुद्ध पाली में बोल रहे थे। वेद के ऋषियों ने किसी और तरह के दार्शनिक ढांचे का उपयोग किया था, बुद्ध किसी और तरह के ढांचे का उपयोग कर रहे थे। अंगुलियां अलग-अलग थीं, इशारा एक ही तरफ था। लेकिन पंडित-पुरोहित को लगा कि यह तो धर्म का विनाश हो जाएगा। . गौतम का धर्म स्थिति-स्थापक नहीं है। गौतम क्रांति के पक्षपाती हैं।
गौतम परिवर्तन के पक्षपाती हैं। वह कहते हैं, तुम्हारे भीतर ज्योति जलनी चाहिए, महापरिवर्तन होना चाहिए, तुम ऐसा कुछ भी न करो जिससे तुम्हारी ज्योति बुझी रहे। तुम ऐसा सब करो जिससे तुम्हारी ज्योति जल जाए। सब प्रयत्न करो, ताकि तुम जीवंत हो जाओ। स्वयं की आंख चाहिए, स्वयं के कान चाहिए, स्वयं का धड़कता हुआ हृदय चाहिए, अपने पैर चाहिए और अपने ही बल पर पहुंचने की हिम्मत चाहिए।
गौतम ने आधारशिला रखी थी मनुष्य के ऊपर।
और धर्म ईश्वर पर आधारशिला रखते हैं। कोई देवी-देवताओं पर आधारशिला रखता है। गौतम ने आधारशिला रखी थी मनुष्य पर। गौतम ने आधारशिला रखी थी
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