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________________ एस धम्मो सनंतनो खिलवाड़ करते रहे। ऐसे ही, उपचार की तरह, करना चाहिए, कर्तव्य की भांति करते रहे। यह तम्हारे जीवन की शैली नहीं है। तुम इस पर दांव पर कुछ भी लगाने को राजी नहीं हो। तुम चाहते हो मुफ्त भगवान ऐसे मिलता हो, माला इत्यादि फेरने से मिल जाए तो ठीक, न मिले तो ठीक। कभी-कभी तो शायद डरते भी हो कि कहीं ज्यादा माला न फेर दं, कहीं मिल ही न जाए! क्योंकि मिल जाए तो अड़चन खड़ी होगी। मिल जाए भगवान तो फिर क्या करोगे? मिल जाए भगवान तो फिर ऐसे ही तो न हो सकोगे जैसे हो। फिर उसके रंग में रंगना होगा। फिर अ ब स से एक दूसरी ही भाषा सीखनी होगी। जीवन का एक और ही ढांचा रचना होगा, एक और ही मंदिर बनाना होगा। उतनी अड़चन कोई लेना नहीं चाहता। माला भी हम जप लेते हैं, पाठ भी हम पढ़ लेते हैं, पूजा भी हम कर लेते हैं और भरोसा रखते हैं कि इससे कहीं कुछ होने वाला थोड़े ही है। बहुत थोड़े से लोग हैं जो सच में ही सत्य की तलाश पर हैं। और जो तलाश पर हैं, उन्हें मिलता है। जो तलाशा जाता है, मिलता ही है। इस जगत में तुम जो चाहोगे, मिलेगा। अगर न मिले तो एक ही बात समझना कि तुमने चाहा ही न था। चाहत गहरी हो, तो परिणाम होते ही हैं। प्यास गहरी हो, तो प्यास ही प्राप्ति बन जाती है। बहुत तो ऐसे थे जिनके प्राणों में भगवान की उपस्थिति भाले सी चुभ रही थी। उनका व्यवसाय खतरे में था, उनकी व्यवस्था खतरे में थी, उनका पांडित्य, उनका पौरोहित्य खतरे में था। भगवान की मौजूदगी में वे अज्ञानी मालूम होने लगे थे। भगवान मौजूद नहीं थे तो वे ज्ञानी थे, लोग उनके पास आते थे, लोग उनसे पूछते थे, सलाह-मशविरा लेते थे। भगवान की मौजूदगी में पंडित फीका होने लगा। जब भी कोई व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है तो सबसे ज्यादा चोट पंडित को पहुंचती है। क्योंकि बुद्धत्व है असली ज्ञान और पांडित्य है झूठा ज्ञान-नकली, उधार, बासा, कूड़ा-करकट, उच्छिष्ट, इकट्ठा किया हुआ। तो जैसे ही कोई बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति मौजूद हो जाता है, वैसे ही पंडित सबसे ज्यादा अड़चन में पड़ता है; सबसे बड़ी कठिनाई उसकी खड़ी हो जाती है। जीसस को जिन लोगों ने सूली दी, वे यहूदियों के पंडित-पुरोहित थे। बुद्ध के खिलाफ जिन लोगों ने हजारों तरह के षड्यंत्र रचे, वे सब पंडित और पुरोहित थे। धर्म का दुश्मन इस पृथ्वी पर पंडित और पुरोहित से ज्यादा और कोई भी नहीं है। मंदिरों में भगवान की पूजा नहीं हो रही है, क्योंकि पंडित-पुरोहित के हाथ में पूजा है और पंडित-पुरोहित सदा से शैतान के हाथ में है। वह कभी भगवान का साथी रहा नहीं। वह सदा से भगवान का दुश्मन है। वह भगवान के नाम का उपयोग करता है, शोषण करता है, वह अच्छा धंधा है। __इन लोगों को लगता था कि गौतम धर्म के नाश पर उतारू है। और एक बात, इसमें थोड़ी सचाई भी थी। 204
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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