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एस धम्मो सनंतनो
न दे। इसे सूली देना जरूरी हो गयी।
सुकरात को हमने जहर दिया, क्योंकि सुकरात घूम-घूमकर लोगों को जगाने लगा। सोए लोग जागना नहीं चाहते। सोए लोग सिर्फ सो ही थोड़े रहे हैं, बड़े-बड़े मधुर सपने देख रहे हैं। जब इन्हें तुम जगाओ तो इनके सपने टूटते हैं। और इन्होंने सपनों के अतिरिक्त और कुछ जाना नहीं है। सपने ही इनके जीवन का सत्य हैं।
तो तुम इन्हें जब जगाते हो तो इनको लगता है, तुम हमारे दुश्मन हो। तुम हमारे सपने तोड़े दे रहे हो। हम इतने मजे में लीन थे—महल बना रहे थे, सुंदर रानियां थीं, पुत्र थे, बड़ा राज्य था—तुम हमें घसीटकर कहां ला रहे हो इस जागने में। इस जागने में कुछ भी नहीं है, हम भिखमंगे हैं, यह झोपड़ी है, यह कुरूप सी पत्नी है, यह उपद्रवी लड़का है। हम अपनी नींद में मजे से पड़े थे, हम सपना मीठा देख रहे थे, तुम हमें जगाओ मत।
हम बुद्धों से नाराज रहे हैं। हमने उस नाराजगी का उनसे अनेक तरह से बदला लिया है। हमारा प्रतिशोध बहुत गहरा है। और उपाय क्या हैं हमारे प्रतिशोध के? हमारे उपाय यही हैं कि जैसे हम हैं वैसा ही हम उन्हें भी सिद्ध कर दें। इतना सिद्ध हो जाए कि जैसे हम हैं वैसे ही वे हैं, बात खतम हो गयी। फिर कोई अड़चन न रही।
भगवान का प्रभाव प्रतिदिन बढ़ता जाता था।
इस प्रभाव को बढ़ाने के लिए कुछ करना नहीं होता। इस प्रभाव को बढ़ाने की कोई आकांक्षा भी नहीं होती जिसके भीतर भगवत्ता का जन्म हुआ हो। यह प्रभाव अपने से बढ़ता है। जैसे सूरज ऊगता है और रोशनी फैलती है। और फूल खिलता है और सुगंध बिखरती है। ऐसा यह प्रभाव है। इस प्रभाव को करने की कोई चेष्टा नहीं है। कोई प्रभावित हो, ऐसा बुद्धपुरुष चेष्टा नहीं करते। उनकी सहज उपस्थिति, उनका जागरण, उनका चैतन्य अनेकों को खींचने लगता है। वे चुंबक हो जाते हैं। लोग ऐसे खिंचे चले आते हैं जैसे लोहे के टुकड़े खिंचे चले आते हैं। उनकी मौजूदगी सम्मोहक हो जाती है। जिन्होंने उनका स्वाद लिया, फिर उन्हें भूल नहीं पाते, फिर और स्वाद लेने का मन होने लगता है।
भगवान का प्रभाव प्रतिदिन बढ़ता जाता था। जो धर्मानुरागी थे, वे खूब आनंदित थे।
जो धर्मानुरागी थे वे इसलिए आनंदित थे कि भगवान की मौजूदगी में उन्हें प्रमाण मिल गया कि धर्म सत्य है। कि वेद जो कहते हैं, कि उपनिषद जो कहते हैं, वे सिर्फ कथन मात्र नहीं हैं, वे वक्तव्य मात्र नहीं हैं, यहां जीता धर्म प्रगट हो गया था। जो वस्तुतः धर्मानुरागी थे वे तो बड़े आनंदित थे, वे तो नाच रहे थे, वे तो मगन थे। वे कहते थे, हम धन्यभागी हैं! सुना था शास्त्रों में, अब आंख से देखा। सुनते आए थे, अब अनुभव किया।
बड़ा फर्क है। सूरज के संबंध में सुना हो और फिर सूरज को ऊगते देखना,
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