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सत्यमेव जयते कामवासना से दमित लोगों के जगत में इतनी ही बात काफी है लोगों में फैला देनी कि कोई सुंदरी स्त्री बुद्ध के पास रात जाती है और बुद्ध को रति- रमण कराती है। बस इतना काफी था ।
यह सुंदरी परिव्राजिका` इस गांव के बहुत लोगों को लुभाती रही होगी। एक तो सुंदर थी, फिर भिक्षुणी थी, बुद्ध की शिष्या थी। गांव में भिक्षा मांगते हुए इस भिक्षुणी को देखकर न मालूम कितनों का मन डांवाडोल हुआ होगा ।
इस बात को भी खयाल में लेना । साधारण स्त्री से भी ज्यादा साध्वी लुभाती है; क्योंकि साधारण स्त्री को पाना बहुत कठिन नहीं, साध्वी को पाना बहुत कठिन है। और जिसको पाना कठिन है, उसमें उतना ही रस आता है। जितना दुर्गम हो जाए पाना, उतना ही रस आता है। जिसे पाना सरल है, उसमें रस खो जाता है । उसमें क्या रस ! उसमें अहंकार को कोई चुनौती नहीं होती ।
यह सुंदरी साध्वी घूमती होगी गांव में, भिक्षा मांगती होगी। इसकी सुंदर देह देखकर, इसका सुंदर रूप देखकर अनेकों का मन डांवाडोल हुआ होगा । फिर अचानक खबर गांव में आयी कि यह सुंदरी तो बुद्ध के साथ शारीरिक संबंध रखती है, तो अनेकों ने मान लिया होगा। जिन-जिन ने इससे शारीरिक संबंध बनाने की कामना की होगी, सपना देखा होगा, उन सबने मान लिया होगा कि बात बिलकुल ठीक है, हम भी डोले थे। अपने मन में सोचा होगा - हमें भी प्रभावित किया था। और उन्होंने बदला भी लिया होगा। अब यह अच्छा मौका था, बुद्ध से बदला लिया जा सकता है।
बुद्ध से हम बदला क्यों लेना चाहते हैं? बुद्ध के कारण हमें बहुत चोट लगती है। अंधों के बीच जैसा आंख वाला अंधों को चोट पहुंचाता है, क्योंकि उसके कारण वे अंधे मालूम होते हैं। बीमारों के बीच जैसे स्वस्थ बीमारों को चोट पहुंचाता है, क्योंकि उसके कारण तुलना में उनको बीमारी दिखायी पड़ती है। जहां घना अंधेरा है और सब लोग अंधेरे में टटोल रहे हैं, वहां एक व्यक्ति जिसका भीतर का दीया जल रहा है, हमारे भीतर बड़ा क्रोध जगाता है । यह हमारा अपमान है। दीया हममें नहीं जल रहा है, किसी और में जल रहा है, यह हमारे लिए ईर्ष्या का कारण बन जाता है।
तो ऐसा ही नहीं है कि हमने जीसस को अकारण सूली दे दी। हमें देनी पड़ी। बर्दाश्त के बाहर हो गए। एक सीमा थी सहने की। फिर यह आदमी घूम-घूमकर हमें पीड़ा देने लगा। जब भी हम इसे देखते, हमें अड़चन होने लगी । यह हमें नकारने लगा। इसके सामने मौजूद, खड़े होने पर हम दीन-हीन मालूम होने लगे। हमें लगने लगा कि हम तुच्छ, ना कुछ। जीवन ऐसा होना चाहिए। और हमारा जीवन कीड़े-मकोड़े सा सरकता हुआ ! जीवन ऐसा होना चाहिए। यह आदमी हमें बहुत तड़फाने लगा। यह आदमी हमें बहुत ज्यादा चोटें करने लगा। यह हमें शांति से सोने
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