SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो बेचैनी और परेशानी पैदा होती है। परेशानी और बेचैनी में कामुकता पैदा होती है। शांत, चैन में भरा हुआ चित्त हो तो कामवासना पैदा नहीं होती। कामवासना तुम्हारे भीतर एक तरह का ज्वर है; और कामवासना से राहत मिलती है। राहत तभी मिलती है जब ज्वर खड़ा हो। तो कामवासना तुम्हारे शरीर को क्षीण करती है, शक्ति क्षीण हो जाती है तो ज्वर क्षीण हो जाता है। भीतर का उबाल कम हो जाता है, तुम शांति से सो जाते हो। __ कामवासना जाती है कामवासना के दमन से नहीं, ध्यान के माध्यम से उमगी शांति के द्वारा। जब कोई व्यक्ति ठीक विराम में जीने लगता है, जिसके जीवन में कोई तनाव नहीं है, कोई चिंता नहीं है, कोई बेचैनी नहीं है, जिसका जीवन हल्के फूल जैसा है, जिसके पैर जमीन पर नहीं पड़ते, जो हवा में उड़ा-उड़ा है और जो प्रतिपल रस में डूबा है—रसो वै सः-जैसे कल पतंजलि ने अपने शिष्य चैत्र से कहा कि जो सदा रसलीन है, वह कामवासना में नहीं उतरेगा। क्योंकि कामवासना में वह उतरकर पाएगा कि सिर्फ शक्ति क्षीण होती है और उसका रस खोता है। ___कामवासना से जितना आनंद मिलता है, जब तुम उससे ज्यादा आनंद की अवस्था में जीने लगोगे तो कामवासना समाप्त हो जाएगी। जब तक कामवासना में जो रस मिलता है, वह तुमसे ऊपर है और तुम उससे नीचे जी रहे हो, तब तक तो रस बना रहेगा। ___ बात को खयाल में लेना, तुम्हारे लिए काम की है। इन कथाओं के सहारे मैं कुछ तुमसे कहना चाह रहा हूं। बुद्ध में मेरी उतनी उत्सुकता नहीं है, जितनी तुममें मेरी उत्सुकता है। क्योंकि तुमसे मैं बात कर रहा हूं। बुद्ध तो बहाना हैं। जब तक तुम्हारा चित्त कामवासना से ज्यादा रस न पाने लगे, तब तक तुम कामवासना से न छूट सकोगे। और जो लोग कामवासना से लड़ते हैं, उनकी हालत और बदतर हो जाती है। उनका चित्त और भी बेचैन हो जाता है, वे और भी नीचे गिर जाते हैं। इसलिए उनके चित्त में सदा कामवासना के ही विचार तैरते रहते हैं। मनुष्य-जाति ने काम का इतना दमन किया है, इसीलिए काम से मुक्त नहीं हो पाती। और इसीलिए अफवाहें काम से ही संबंधित होती हैं। फिर अब बुद्ध के प्रति धन की बात तो कही नहीं जा सकती थी, क्योंकि धन तो उनके पास बहुत था, छोड़कर आ गए थे। वह तो उनकी बदनामी का कारण नहीं बनाया जा सकता था। एक ही बात बचती थी कि कामवासना को उनकी बदनामी का कारण बनाया जाए। बुद्ध से, बुद्ध के सत्य से सीधी टक्कर भी नहीं ली जा सकती थी। क्योंकि सत्य इतना प्रगाढ़ था, इतना स्पष्ट था, सूर्य की तरह ऊगा था। इन धर्मगुरुओं की हैसियत भी न थी कि इस सत्य के सामने आंखें उठाकर खड़े हो जाएं। इस सत्य के सामने तो आ भी नहीं सकते थे। पीछे छुपकर पीठ में छुरा मार सकते थे। अंधेरे में छुरा मार सकते थे। और इससे ज्यादा सुगम कोई उपाय नहीं है। 200
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy