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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारे भीतर जो दबा है, वह तुम तैयार हो किसी पर्दे पर फैला दो, तुम्हें राहत मिल जाए। कामवासना सबसे ज्यादा दबायी गयी बात है। इस दुनिया में उसी दिन बुद्धों को इस तरह की बदनामी से बचने का अवसर आएगा जिस दिन लोगों की कामवासना दबी न रहेगी; स्वस्थ होगी, सहज होगी, स्वीकृत होगी। तुमने कभी देखा, कोई यह तो दोष नहीं लगाता बुद्ध पर कि रात सोते हुए पाए गए। क्यों नहीं लगाता? क्योंकि निद्रा को हम स्वीकार करते हैं। कोई बुद्ध पर यह दोष तो नहीं लगाता कि स्नान करते पाए गए। क्योंकि स्नान को हम स्वीकार करते हैं। लेकिन अगर तुम अस्वीकार कर दो स्नान को, तो दोष पकड़ में आ जाएगा। जैन हैं, दिगंबर जैन हैं, वे मानते हैं कि मुनि को स्नान नहीं करना चाहिए। मुनि क्यों स्नान करे! यह तो संसारी जन स्नान करते हैं। यह तो शरीर को सुंदर-स्वच्छ बनाने की जिनकी आकांक्षा है, वे स्नान करते हैं। यह तो शरीर के पीछे जो दीवाने हैं, वे स्नान करते हैं। स्नान तो शरीर का प्रसाधन है। जैन-मुनि क्यों स्नान करे! उसे तो शरीर से कोई मोह नहीं है। इसलिए दिगंबर जैन-मुनि स्नान नहीं करता। लेकिन दिगंबर जैन-मुनियों के प्रति इस तरह की अफवाहें चलती हैं कि फलां दिगंबर मुनि एकांत में तौलिया पानी में भिगोकर शरीर साफ कर लेता है। यह पाप हो गया। तुमने कभी सोचा नहीं होगा कि तुम दिन में दो दफा स्नान करते हो, महापाप कर रहे हो। और कोई अगर तुम्हारी बदनामी करे तो उसे यह करनी पड़ेगी कि यह सज्जन स्नान नहीं करते। स्नान करते हैं, इसमें क्या बदनामी है! लेकिन जैन-मुनि, दिगंबर जैन-मुनि की बदनामी हो जाती है। श्वेतांबर जैन-मुनि दातून नहीं करता नहीं करना चाहिए। तो श्वेतांबर जैन-मुनि या साध्वियों के संबंध में बदनामी चलती है कि फलानी के वस्त्रों में टूथपेस्ट छुपा हुआ पाया गया। __अब यह भी कोई पाप है! मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि पाप बनता इस बात से है, जिस चीज को तुम दबाना चाहोगे वही पाप बन जाएगी। अगर किसी साध्वी के मुंह से बास न आए तो श्रावकों को शक हो जाता है कि कुछ गड़बड़ है, दाल में काला है। मुंह से बास नहीं आ रही है! इसका मतलब दातून की है, या मुंह साफ किया है। यह तो नहीं करना चाहिए साधु को। मुंह साफ इत्यादि तो वे लोग करते हैं जिनका शरीर में रस है। यह शरीर तो सड़ा-गला है ही, इसको साफ-सुथरा क्या करना है! यह तो मर ही जाएगा, मिट्टी में मिट्टी गिर जाएगी, इसको क्या दातून करनी! जिस चीज के भी प्रति तुमने दमन किया, उसका परिणाम अंततः यह होगा कि उस चीज को तोड़ने की बात पाप मालूम होने लगेगी। दुनिया में जब तक कामवासना सहज स्वीकार न होगी, तब तक बुद्धों के प्रति इस तरह की कहानियां पैदा होती रहेंगी। ये कहानियां बुद्धों के कारण पैदा नहीं होती, ये लोगों के चित्त में कामवासना का जो अस्वीकार है, जो विरोध है, उसके कारण 198
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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