________________
सत्यमेव जयते
पड़ने लगेगी। कहीं तो देखोगे न उसे जो तुमने दबा लिया है। उसको कहीं तो रखोगे। अपने भीतर तो रख नहीं सकते, उसे किसी और के ऊपर रखोगे। तुमने अगर कामवासना दबायी है, तो तुम कामवासना किसी और के ऊपर रखोगे। ____ मैंने सुना है, सूफी फकीर हुआ बायजीद। एक और फकीर उसके पास रात मेहमान हुआ। वह फकीर बड़ी निंदा करने लगा स्त्रियों की कि स्त्रियां ही नर्क का द्वार हैं-जैसे कि तुम्हारे साधु-संत सदा से कहते हैं, स्त्री नर्क का द्वार है। एक दफा बायजीद ने सुना, दूसरी दफा बायजीद ने सुना। तीसरी दफा बायजीद ने कहा, मेरे भाई, तुम इस द्वार में इतने उत्सुक क्यों हो? तुम्हें नर्क जाना है? तुम जब से आए हो, परमात्मा की बात ही नहीं की! तुम्हारी नजरें इस द्वार पर क्यों अटकी हैं? और यहां कोई स्त्री है भी नहीं, यहां मैं बैठा और तुम बैठे। यहां द्वार कहां है? तुम्हें यह द्वार दिखायी क्यों पड़ता है? तुम स्त्री से इतने भयभीत क्यों हो? जरूर तुमने स्त्री को खूब दबा लिया है भीतर, वह स्त्री बदला ले रही है।
जिन-जिन संतों ने तम्हारे शास्त्रों में लिखा है कि स्त्री नर्क का द्वार है. उनसे सावधान रहना। ये व्यक्ति न तो स्त्री को समझ पाए, न स्वयं को समझ पाए। और ये शास्त्र चूंकि पुरुषों ने लिखे हैं इसलिए नर्क का द्वार है, अगर स्त्रियां लिखतीं तो? तो पुरुष नर्क का द्वार होना चाहिए। क्योंकि स्त्रियां अपने ही द्वार से तो नर्क नहीं जा सकेंगी! कौन द्वार अपने में से ही नर्क जा सकता है? द्वार तो सदा दूसरा चाहिए। स्त्रियां भी नर्क जाती हैं या नहीं?
एक महात्मा एक समय मेरे पास मेहमान थे। वह कहने लगे, स्त्रियां नर्क का द्वार हैं। तो मैंने कहा कि तुम सोचते हो इसका मतलब हुआ कि सब स्त्रियां स्वर्ग पहुंची होंगी। नर्क तो जा ही नहीं सकतीं। पुरुष स्वर्ग का द्वार है और स्त्रियां नर्क का द्वार हैं, तो यह तो बड़ा महंगा मामला हो गया। सब पुरुष नर्क में पड़े होंगे, सब स्त्रियां स्वर्ग में होंगी। स्त्रियां किस द्वार से नर्क जाती हैं? मैंने उनसे कहा, यह मुझे
कहो महात्मा कि स्त्रियां किस द्वार से नर्क जाती हैं? वह जरा बेचैन हुए, उन्होंने कहा, . यह तो कहीं शास्त्र में लिखा नहीं कि स्त्रियां किस द्वार से नर्क...स्त्रियों का विचार ही कौन करे!
स्त्रियों को गालियां दी गयी हैं। गालियां स्त्रियों को नहीं दी गयी हैं, गालियां दी गयी हैं अपनी ही दबी वासना के प्रति क्रोध है, क्योंकि वह वासना धक्के मारती है। फिर इस वासना को दूसरे पर आरोपित करना जरूरी है। तो थोड़ा हल्कापन आता है। जिसको मनोवैज्ञानिक प्रोजेक्शन कहते हैं। जो तुमने अपने भीतर दबा लिया, उसे तुम दूसरे में देखने लगते हो। चोर को सभी लोग चोर दिखायी पड़ने लगते हैं। जेबकट अगर किसी महात्मा के भी पास जाए तो अपनी जेब सम्हालकर रखता है। क्या भरोसा! और महात्माओं का क्या भरोसा! कलियुग चल रहा है, कहां के महात्मा! जेब न काट लें!
197