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________________ एस धम्मो सनंतनो भ्रष्ट हो गया, तुम कहते हो कि देखो, वह संत भ्रष्ट हो गया; अरे, महात्मा कैसे पतित हो गए! इस आदमी को तुमने महात्मा इसके पहले कहा ही नहीं था, अब तुम कहते हो जब तुम्हें भ्रष्ट होने का पक्का हो जाता है। तुम किसी को महात्मा तभी कहते हो, जब तुम उसे पहले गिरा लेते हो । उसके पहले महात्मा नहीं कहते। अब महात्मा कह सकते हो, अब कोई डर नहीं है, अब तो में पड़ा है, तुमसे भी बुरी हालत में हो गया है, अब तुम्हें कोई इससे भय नहीं है। तुमसे भी पिछड़ गया। कम से कम तुम इतने बुरे तो नहीं हो। अपनी पत्नी के साथ रहते हो, अपने बच्चों के साथ रहते हो, तुम कम से कम अपनी सीमा और मर्यादा में रहते हो। यह आदमी तुमसे बुरा हो गया। लेकिन अब इसको अगर पूरा-पूरा बुरा सिद्ध करना है तो संत मानना जरूरी है, नहीं तो गिरेगा कैसे! अगर पहले से बुरा था, तो पतन तो हुआ नहीं। अब तुम कहते हो कि हां, यह आदमी पहले संत था, अब भ्रष्ट हो गया है। और जब भी भ्रष्ट होने की बात तुम्हारे खयाल में आती है, तब किसी न किसी तरह कामवासना से जुड़ी होती है। कामवासना से ही क्यों तुम्हारे भ्रष्ट होने का भाव जुड़ा है? जब भी तुम कहते हो, फलां आदमी अनैतिक है, तो तुम्हारे मन में एक ही सवाल उठता है कि अनैतिक, मतलब किसी न किसी तरह काम के जगत में भ्रष्ट । झूठ बोले, इसका खयाल नहीं आता, कि आदमी अनैतिक है तो झूठ बोलता होगा। वचन का पालन न करता होगा, इसका खयाल नहीं आता । बेईमान होगा, इसका खयाल नहीं आता। तस्करी करता होगा, इसका खयाल नहीं आता। डाका डालता होगा, इसका खयाल नहीं आता। हत्या करता होगा, इसका भी खयाल नहीं आता । जैसे ही किसी ने कहा, फलां आदमी अनैतिक है, इम्मारल है, तुम समझ गए कि किसी स्त्री के साथ गलत संबंध है। तुम्हारी सारी नैतिकता कामवासना पर केंद्रित हो गयी है । और तुम्हारी सारी अनैतिकता का एक ही अर्थ होता है कि कोई व्यक्ति किसी तरह के असामाजिक, गैरकानूनी काम-संबंधों में संलग्न है। इतनी क्षुद्र नैतिकता ! इतनी सीमित नैतिकता ! तुम्हारी नैतिकता अति कामुक है। और इसका कारण है। क्योंकि सदियों सदियों से तुम्हारे मन में जो वासना दबायी गयी है, वही सबसे महत्वपूर्ण हो गयी है। जिसे दबाओगे वही महत्वपूर्ण हो जाता है। जिसे बार-बार दबाओगे, वह बार-बार उभरना चाहेगा। जिसे दबाओगे, वह बदला लेना चाहेगा। जिसे तुम दबाओगे, झुठलाओगे, वह नए-नए रूपों में उठेगा। जिसे तुम अपने भीतर दबाओगे, उसको तुम दूसरे के ऊपर प्रतिस्थापित करने लगोगे | इस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को खयाल में लेना । तुम दूसरे में वही देखने लगोगे जो तुमने अपने में दबाया है। तुमने अगर धन की वासना दबायी है, तो तुम्हें दूसरों में धन की वासना खूब प्रगाढ़ होकर दिखायी 196
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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