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________________ एस धम्मो सनंतनो झूठा हो गया। बुद्ध का विरोध किया उपनिषद के ऋषियों को मानने वालों ने। शंकराचार्य का विरोध किया बुद्ध को मानने वालों ने। आज कोई खड़ा हो, शंकराचार्य उसके विरोध को तत्पर हैं। इस बात की व्यवस्था को समझ लेना । अतीत विरोध करता है वर्तमान का, मृत विरोध करता है जीवंत का। सड़ा-गला विरोध करता है नए खिले फूल का । और जिनके मन अतीत से मुक्त नहीं हैं, वे कभी बुद्धों को समझ नहीं पाते। किसका मन अतीत से मुक्त है! बहुत मुश्किल से ! उंगलियों पर गिने जा सकें ऐसे लोग हैं जिनकी इतनी हिम्मत है, जो अपने अतीत को टालकर एक तरफ रख दें, सूरज की जो नयी किरण निकली हो उसके स्वागत के लिए राजी हो जाएं। सूरज की इस नयी किरण पर अपनी आस्थाएं, अपनी धारणाएं न रोपें, अपने पक्षपात न रोपें । इस सूरज की किरण के पक्ष में अपने सारे पक्षपात गिरा दें, नग्न हो जाएं, निर्वस्त्र होकर इसे स्वीकार कर लें। वे ही थोड़े से लोग रूपांतरित हो पाते हैं। तो यह कथा नयी नहीं । दूसरे कारण से भी यह कथा बड़ी प्राचीन है। जब भी बुद्धों को बदनाम करना हो, तो किसी न किसी रूप में दो ही उपाय काम में लाए जाते हैं- - या तो बदनाम करो कि उनका धन से कुछ संबंध है, या बदनाम करो कि काम से उनका कुछ संबंध है । कामिनी और कांचन, दो ही उपाय | बड़ी पुरानी बात हो गयी, बड़ी सड़ी-गली बात हो गयी। बस ये दो ही उपाय हैं। धन से विरोध करो, कहो कि यह आदमी धन के प्रति मोह से भरा है, या काम से विरोध करो। क्यों ? मनुष्य के मन के संबंध में इससे खबर मिलती है । मनुष्य का मन दो बातों से घिरा है— कामिनी और कांचन । मनुष्य दो ही चीजों में उत्सुक है, दो ही में उसका रस है । और ये दो ही बातें हैं जिनके प्रति मनुष्य ने सदा अपने को दबाया हैं और दमित किया है। फिर धन के संबंध में दमन बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन काम के संबंध में दमन बहुत ज्यादा है। इसलिए काम के संबंध में अगर प्रचार कर दो कि बुद्ध का कोई, किसी तरह का भी काम-संबंध है, तो बुद्ध की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने से तुम चूक न पाओगे, तुम सफल हो जाओगे। क्योंकि लोगों का हृदय कुंठा से भरा है, काम के प्रति इतने दमन से भरा है कि वे मानते हैं यह कि ऐसा होना ही चाहिए। यह सच होगा ही, यह झूठ हो नहीं सकता, क्योंकि वे अपने को जानते हैं, अपने भीतर जलते हुए काम के प्रवाह को जानते हैं, अपने भीतर ज्वालामुखी छिपा है इसको जानते हैं। वे सोचते हैं, जो मेरे भीतर छिपा है वह बुद्ध के भीतर कैसे न होगा ? सब ऊपर की बातें हैं, भेद सब ऊपर के हैं, भीतर तो बुद्ध भी ऐसे ही आदमी हैं जैसा मैं आदमी हूं। और जब मेरे भीतर कामवासना ऐसी जलती है, लपटें लेती है, तो बुद्ध के भीतर भी लेती होगी। 194
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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