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सत्यमेव जयते
के लिए सब साथ हो जाते हैं।
बहुत से संप्रदाय थे भारत में, जब बुद्ध का जन्म हुआ। और उन सभी संप्रदायों का आपस में बड़ा विरोध था। लेकिन बुद्ध के आविर्भाव के साथ ही जैसे उन सबका विरोध बुद्ध से हो गया, उनकी आपस की दुश्मनियां कम हो गयीं। अब उन सबको खतरा एक ही से था। किसी भी भांति बुद्ध का सत्य लोगों की समझ में न आए। क्योंकि बुद्ध के सत्य के समझ में आने का अर्थ था कि उनकी दुकान गयी, उनकी दुकान उठी। बुद्ध के सत्य का समझ में आ जाना तो उनके जीवन-मरण का सवाल हो गया। उनका सारा व्यवसाय टूट जाएगा।
तो यह कथा नयी नहीं है। यह गौतम बुद्ध के साथ तो घटी ही है, लेकिन समस्त बुद्धों के साथ घटी है। इसलिए इस कथा को मैं अनूठी कथा कहता हूं। यह ऐतिहासिक नहीं है, यह पौराणिक है। यह पहले भी घटती रही है, आज भी घटती है और कल भी घटेगी। ऐसा सौभाग्य का दिन अब तक नहीं आया जब हम सत्य का स्वागत करने को सहज तैयार हों। ऐसा सौभाग्य का दिन कभी आएगा, इसकी आशा भी दुराशा है।
और जाल में कई जटिलताएं हैं। जैसे बद्ध के साथ यह टक्कर हुई, धर्मगुरु लड़े। फिर बुद्ध ने जो कहा, उस बात को सुनकर नए धर्मगुरुओं का जाल खड़ा हो गया। अब अगर आज फिर कोई बुद्ध पैदा हो तो यह मत सोचना कि बुद्ध के अनुयायी उसका साथ देंगे, नहीं, वे भी लड़ने को उसके साथ उतने ही तत्पर होंगे। अतीत बुद्धों के अनुयायी नए बुद्धों से लड़ते रहते हैं। क्योंकि जैसे ही बुद्ध का जाना होता है, जैसे ही बद्ध की विदा होती है इस जगत से कि पंडित-पुरोहितों का गिरोह बुद्ध के वचनों को भी घेर लेता है। वहां भी मंदिर बनेगा, वहां भी शास्त्र रचा जाएगा, वहां भी पद-प्रतिष्ठाएं खड़ी होंगी, वहां भी राजनीति चलेगी। जब दुबारा फिर कभी बुद्ध का आगमन हो, तो यह जो जाल खड़ा हो जाएगा, यह बुद्ध से लड़ेगा। स्वयं बुद्ध भी लौटकर आएं, तो भी उन्हें अपने ही भक्तों से लड़ना पड़ेगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
हम असत्य के इतने पुराने पूजक हैं कि हम एक असत्य को छोड़ते हैं कि हम दूसरे को पकड़ लेते हैं। इधर छूटा नहीं कि उधर हमने पकड़ा नहीं। असत्य को पकड़ने की हमारी आदत इतनी जड़ है कि अगर हम कभी एक असत्य को छोड़ते भी हैं तो तत्क्षण हम दूसरे को पकड़ लेते हैं। या अगर कभी भूल-चूक से सत्य भी हमारे हाथ में आ जाए, तो हमारे हाथ में आने के कारण असत्य हो जाता है। हमारे पात्र इतने जहरीले हो गए हैं कि अमृत भी अगर हमारे पात्र में भरता है तो जहरीला हो जाता है। हमारे हाथों में चमत्कार हो गया है! असली सिक्के आकर हमारे हाथों में झूठे हो जाते हैं। ___ वेद तो झूठा था ही बुद्ध के समय में लोगों के हाथों में नहीं कि वेद झूठा है, लोगों ने झूठा कर लिया था—बुद्ध ने तो फिर सत्य दिया, लेकिन लोगों के हाथ में
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