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सत्यमेव जयते
को बढ़ा-बढ़ाकर फैलाने लगे। और भगवान के पास आने वालों की संख्या रोज-रोज कम होने लगी। हजारों आते थे, फिर सैकड़ों रह गए, और फिर अंगुलियों पर गिने जा सकें इतने ही लोग बचे। और भगवान हंसते और कहते-देखो, सुंदरी परिव्राजिका का अपूर्व कार्य, कचरा-कचरा जल गया, सोना-सोना बचा।।
भगवान की शांति को अचल देख उन तथाकथित धर्मगुरुओं ने गुंडों को रुपये देकर सुंदरी को मरवा डाला और फूलों के एक ढेर में जेतवन में ही छिपा दी उसकी लाश। भगवान की शांति से सुंदरी अपने कुकृत्य पर धीरे-धीरे पछताने लगी थी। भगवान ने उसे एक शब्द भी नहीं कहा था और न ही उसके आने-जाने पर कोई रोक ही लगायी थी। उसकी अंतरात्मा ही उसे काटने लगी थी। इस कारण उसकी हत्या आवश्यक हो गयी थी। उसके द्वारा सत्य की घोषणा का डर पैदा हो गया था। फिर यह हत्या षड्यंत्र को और भी गहरा बनाने का उपाय भी थी।
सुंदरी की हत्या के बाद उन धर्मगुरुओं ने नगर में खबर फैला दी कि मालूम होता है कि गौतम ने अपने पाप के भय से सुंदरी को मरवा डाला है। उन्होंने राजा से भी जाकर कहा कि महाराज, हम सुंदरी परिव्राजिका को नहीं देख रहे, दाल में कुछ काला है। वह श्रमण गौतम के पास जेतवन में ही रातें गुजारा करती थी।
राजा ने जेतवन में सुंदरी की तलाश के लिए सिपाही भेजे, वहां पायी गयी उसकी लाश। धर्मगुरु ने राजा से कहा-महाराज, देखिए यह महापाप। अपने पाप को छिपाने के लिए गौतम इस महापाप को करने से भी न चूका। और वे धर्मगुरु नगर की गली-गली में घूमकर गौतम की निंदा में संलग्न हो गए। भगवान के भिक्षुओं का भिक्षाटन भी कठिन हो गया। भगवान के पास तो अब केवल दुस्साहसी ही जा सकते थे।
और भगवान ने इस सब पर क्या टिप्पणी की!
भगवान ने कहा-भिक्षुओ, असत्य असत्य है, तुम चिंता न करो। सत्य स्वयं अपनी रक्षा करने में समर्थ है। फिर सत्य के स्वयं को प्रगट करने के अपने ही मार्ग हैं, अनूठे मार्ग हैं। तुम बस शांति रखो, धैर्य रखो। ध्यान करो और सब सहो। यह सहना साधना है। श्रद्धा न खोओ, श्रद्धा को इस अग्नि से भी गुजरने दो। यह अपूर्व अवसर है, ऐसे अवसरों पर ही तो कसौटी होती है। श्रद्धा और निखरकर प्रगट होगी। सत्य सदा ही जीतता है।
और फिर ऐसा ही हुआ। सप्ताह के पूरे होते-होते ही जिन गुंडों ने सुंदरी को मारा था वे मधुशाला में शराब की मस्ती में सब कुछ कह गए। सत्य ने ऐसे अपने को प्रगट कर ही दिया। तथाकथित धर्मगुरु अति निंदित हुए और भगवान की कीर्ति
और हजार गुना हो गयी। लेकिन स्मरण रहे कि भगवान कुछ न बोले सो कुछ न बोले। सत्य को स्वयं ही बोलने दिया। अंत में उन्होंने अपने भिक्षुओं से इतना ही कहा कि असत्य से सदा सावधान रहना। उसके साथ न कभी जीत हुई है, न कभी
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