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________________ एस धम्मो सनंतनो लाल थे, सफेद नहीं थे। रामदास ने कहा, कौन होते हो जी बीच में बोलने वाले, बैठे जाओ! फूल सफेद थे। तब तो हनुमान को और गुस्सा आ गया, उन्होंने कंबल फेंक दिया, उनकी पूंछ निकल आयी बाहर। उन्होंने कहा, तुम समझते क्या हो, मैं खुद हनुमान हूं, मुझको कहते हो बैठ जाओ जी ! और मुझसे कहते हो चिल्लाकर कि फूल सफेद थे। मैं खुद वहां गया था, और तुम हजारों साल बाद कहानी कह रहे हो- - न तुम गए, न तुमने देखा ! हनुमान ने सोचा था अब तो रामदास मान जाएंगे। लेकिन रामदास ने कहा, कोई भी होओ तुम, हनुमान ही सही, तुम रामचंद्रजी को ले आओ तो मैं मानने वाला नहीं, फूल सफेद थे, और सफेद रहेंगे- मेरी कथा में सफेद रहेंगे। इस तरह के हिम्मतवर लोग भी तो होते हैं । ये बड़े प्यारे लोग हैं। ये कहते हैं कि तुम राम को ले आओ तो उनकी फिकर मानने वाला नहीं हूं, कह दिया सफेद, सफेद। मैं था या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं जानता हूं फूल सफेद थे। तो बिगड़ गयी । हनुमान बहुत उछल-कूद मचाने लगे। उन्होंने कहा, चलना पड़ेगा रामचंद्रजी के पास, अब वही निर्णय करें । तो कथा कहती है कि रामचंद्रजी के पास ले जाया गया, रामदास गए - हनुमान ले गए उनको उड़ाकर - राम के सामने निवेदन किया गया। राम ने हनुमान से कहा कि तुझे बीच में नहीं बोलना चाहिए। तू शांत रहा कर। एक तो ऐसी जगह तुम गए किसलिए? गए भी तो अपना कंबल ओढ़े बैठे रहते, चुपचाप सुन लेते तुम्हें सुनना था तो। रामदास ठीक कहते हैं, फूल सफेद थे। हनुमान ने कहा, यह तो हद हो गयी, अन्याय हुआ जा रहा है; मैं खुद गया... । राम ने कहा, तुम गए थे, वह मुझे मालूम है, लेकिन तुम इतने क्रोध से भरे थे, तुम्हारी आंखों में खून था, तुम्हें लाल दिखायी दिए होंगे, फूल सफेद ही थे । तुम्हारी आंख में क्रोध था, खून से भरी थीं आंखें, तुम दीवानी हालत में थे। यह रामदास बैठकर शांति से अपनी कहानी कह रहा है, इसको कोई दीवानगी थोड़े ही है ! इसको कुछ लेना-देना थोड़े ही है ! तुम पागल हुए जा रहे थे - सीता कैद हो गयी थी, तुम जिसे प्रेम करते हो वह राम दिक्कत में पड़ा था, सारी बात अस्तव्यस्त थी; हार होगी कि जीत कुछ पक्का नहीं था, तुम उस अड़चन में थे – तुम्हें कहां ठिकाना कि फूल सफेद थे कि लाल थे। रामदास ठीक कहता है। तुम इससे क्षमा मांग लो। आंख की बात है। संसार की बात नहीं है । तुम्हारी आंख में कामवासना का रंग है तो सब तरफ कामवासना है । तुम्हारी आंख में राम बस गए, सब तरफ राम। फूल वैसे ही हो जाते हैं जैसे तुम्हारी आंख का रंग है । तुमसे मैं संसार छोड़ने को नहीं कहता, संसार में परमात्मा को देखने को कहता हूं। और मैं तुम्हें कोई आश्वासन नहीं दे सकता, क्योंकि आश्वासन की मांग में ही भूल छिपी है। तुम फिर भी यह सोच रहे हो कि सुख किसी और के हाथ में है। सुख 184
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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