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मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव
तुम कहते हो, 'संसार छोड़ने को तैयार हूं, लेकिन क्या आप आश्वासन देते हैं कि मैं इस तरह सुख निश्चय ही पा लूंगा?' ।
आश्वासन कौन देगा? आश्वासन बाहर से आएगा और बाहर की इतने दिन तक चेष्टा कर ली, अब बाहर से छूटो। अब तो भीतर आश्वासन खोजो; अब तो आंख बंद करो और भीतर डुबकी लो। अप्प दीपो भव, बुद्ध ने कहा, अपने दीए बनो। तुम मुझसे मांग रहे हो आश्वासन। जैसे कि मेरे हाथ में है सुख देना। मेरे हाथ में होता तो मैं तुम्हें दे ही देता। जो मेरे हाथ में है, वह मैं तुम्हें दे ही रहा हूं। उसमें जरा भी कंजूसी नहीं है। लेकिन न बुद्ध के हाथ में है तुम्हें सुख देना, न महावीर के हाथ में है। किसी के हाथ में नहीं है। सुख लेना तुम्हारे हाथ में है। और तुम्हारी जब तक दृष्टि गलत है, तब तक सुख न मिलेगा। ____संसार मत छोड़ो, दृष्टि छोड़ो। दृष्टि बदले तो सृष्टि बदल जाती है। सारा खेल दृष्टि का है। मगर दृष्टि बदलने को तुम राजी नहीं। तुम संसार छोड़ने को राजी हो, मगर यही आंखें लेकर तुम जहां भी जाओगे वहीं संसार बन जाएगा।
कथा है प्यारी, महाराष्ट्र में संत हुए रामदास। वह राम की कथा कहते थे, भक्त सुनने आते थे। अब रामदास जैसा व्यक्ति कथा कहे तो कथा में हजार-हजार फूल लग गए होंगे! कथा तो वही है, लेकिन कहने वाले पर निर्भर करती है। कथा की खबर ऐसी फैलने लगी कि सुनते हैं, हनुमान को भी खबर लगी कि रामदास कथा कहते हैं और बड़ा मजा आ रहा है। तो हनुमान भी सुनने आने लगे। बैठ जाते अपना कंबल-वंबल ओढ़कर बीच में और सुनते और बड़ा मजा लेते कि बात तो बड़ी गजब की है।
कभी-कभी ऐसा होता है कि तुम हिमालय देख आए, मगर जब कोई कवि हिमालय देखकर आए और हिमालय का वर्णन करने लगे, तब तुम्हें पता चलता है कि अरे हां, गजब का सौंदर्य था! कोई कवि चाहिए, कोई सौंदर्य का पारखी चाहिए। तुम देख आए हिमालय, मगर तुम अपनी आंख से देख आए न! तुम्हारी आंख में जितना सौंदर्य था उतना देख आए। फिर लौटकर घर आ गए, फिर रवींद्रनाथ आएं हिमालय से और हिमालय का वर्णन करने लगें और हजार-हजार धाराओं में कविता बहने लगे, तब तुम कहोगे कि हां, बात तो मैं जो कहना चाहता था, आपने कह दी!
तो बिचारे हनुमान सीधे-साधे हैं। उनको बहुत जंचने लगी, बड़ा सिर हिलाते थे। बड़े मस्त हो जाते थे कि बात तो मैंने देखी थी आंख से, मगर यह रामदास कह रहा है और इतने ढंग से कह रहा है, और ऐसी बात रुचती है! मगर एक जगह अड़चन हो गयी। एक जगह अड़चन हो गयी, रामदास वर्णन करते हैं कि हनुमान गए अशोक वाटिका में सीता को लेने, और उन्होंने चारों तरफ देखे कि सफेद फूल लगे हैं, पूरी अशोक वाटिका में शुभ्र फूल लगे हैं। हनुमान भूल गए-हनुमान ही ठहरे-खड़े हो गए कि महाराज, और सब ठीक है, मगर यह आप बदल लो, फूल
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