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एस धम्मो सनंतनो हो कि मैं संसार छोड़ने को राजी हूं! मैं रोज-रोज कहे जाता हूं, छोड़ना मत, भागना मत, समझना। ___मगर छोड़ना आसान मालूम पड़ता है, समझना कठिन, इसलिए मैं तुम्हारे प्रश्न को समझता हूं। तुम यह कह रहे हो कि समझने की झंझट में कहां पढ़ें, अगर छोड़ने से काम हल होता हो तो हम अभी छोड़ देते हैं। और अक्सर तो ऐसा होता है कि तुम छोड़ने को तभी राजी होते हो जब संसार ही तुम्हें छोड़ चुका होता है। वैसे बुढ़ापे में लोग अक्सर राजी हो जाते हैं कि चलो, छोड़ देते हैं। ___ रामकृष्ण के पास एक आदमी आता था, वह बड़े उत्सव मनाता था-धार्मिक उत्सव। और हर उत्सव में भेड़ें कटतीं, बकरियां कटती, और बड़ा भोज देता था। फिर अचानक उसने उत्सव मनाने बंद कर दिए। तो रामकृष्ण ने उससे पूछा कि क्या हो गया भाई, तुम बड़े धार्मिक आदमी थे, बड़े उत्सव मनाते थे, क्या हो गया? अब धार्मिक नहीं रहे? आस्था टूट गयी? उन्होंने कहा, नहीं महाराज, आस्था भी वैसे ही है, धार्मिक भी वैसे ही हूं, लेकिन अब दांत ही न रहे। अब, अब क्या फायदा! उस दिन असली बात जाहिर हुई, दांतों ने छोड़ दिया है, तो अब वह कहते हैं कि इस मांसाहार में क्या रखा है? यह अच्छी बात भी नहीं।
जब संसार तुम्हें छोड़ने के करीब होने लगता है, बुढ़ापा आने लगता है, पैर डगमगाने लगते हैं, संसार तुम्हें छोड़ने लगा, तो अब तुम सोचते हो कि चलो अब कम से कम यही मजा ले लो इसे छोड़ने का, छोड़ दें।
फिर संसार को छोड़ने की बात ही उठती इसीलिए है कि संसार में सुख नहीं पाया। अब तुम सोचते हो, शायद संसार को छोड़कर सुख मिल जाए-वही तुम मुझसे पूछ रहे हो। न केवल पूछ रहे हो, तुम गारंटी चाहते हो। तुम कहते हो, आश्वासन देने को तैयार हैं—कि अगर न मिला तो तुम मुझे अदालत में ले जाओगे—कि सुख निश्चित मिलेगा, पक्का मिलेगा अगर मैं संसार छोड़ दूं? तुम सुख के पीछे अब भी उतने ही दीवाने हो। और सुख की आकांक्षा का नाम संसार है। तुम संसार छोड़ोगे कैसे?
सुख की आकांक्षा छूटती है, तो संसार छूटता है। जिस दिन तुम्हें यह दिखायी पड़ता है कि सुख बाहर है ही नहीं, सुख बाहर होता ही नहीं; न संसार पकड़ने से मिलता है, न संसार छोड़ने से मिलता है, क्योंकि पकड़ना भी बाहर, छोड़ना भी बाहर, संसार बाहर। जिस दिन तुम जानते हो कि सुख तो स्वयं में रमने की बात है, इसका संसार को पकड़ने-छोड़ने से कोई संबंध नहीं है, तो क्रांति घटती है। ..
और यह आश्वासन नहीं दिए जा सकते हैं। इसकी कोई गारंटी नहीं हो सकती है। यह तुम पर निर्भर है, मुझ पर निर्भर नहीं है। तुम अगर समझो तो अभी सुख मिल जाए, और तुम अगर न समझो तो कभी भी न मिलेगा। और नासमझी तुम्हारी बहुत मजबूत दिखायी पड़ती है। पक्की।
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