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________________ मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव कह रहे हैं विकसित हो गए! और बंदर हंसते ही होंगे कि यह मामला क्या है? इनका विकास कैसे हो गया! जहां भी अहंकार है, उस अहंकार को भरने की हम सब व्यवस्थाएं करते हैं। तो हम कहते हैं, आदमी सबसे श्रेष्ठ प्राणी। अब विवाद तो कभी हुआ ही नहीं किसी दूसरी जाति के प्राणियों से, सिंहों से तो पूछा नहीं...। ___ मैंने सुना है-ईसप की कहानी है—एक सिंह जंगल में घूमता है, पूछता है एक बंदर से कि क्यों भाई, जंगल का राजा कौन? बंदर कहता है, महाराज, आप हैं, इसमें पूछने की क्या बात है। पूछता एक चीते से, जंगल का राजा कौन? चीता कहता है, यह भी कोई पूछने की बात है। बच्चा-बच्चा जानता है कि आप हैं। फिर उसकी अकड़ बढ़ती जाती है। फिर वह जाता है एक हाथी के पास, पूछता है, जंगल का राजा कौन है ? हाथी उसे सूंड़ में बांधकर और कोई पच्चीस फीट दूर फेंक देता है। गिरता है जमीन पर, धूल झाड़कर उठता है और कहता है, भाई, अगर तुम्हें ठीक मालूम नहीं तो ऐसा क्यों नहीं कहते! साफ कह दो कि उत्तर मालूम नहीं है। अब उत्तर और क्या होता है! हम तब तक नहीं जाग सकते अहंकार से, जब तक हमें अचेतन सूक्ष्म गतिविधियों का बोध न होने लगे। ध्यान की प्रक्रियाएं पहले तुम्हें चेतन में जो अहंकार है उसके प्रति सजग करती हैं। स्थूल अहंकार-धन का, पद का। फिर धीरे-धीरे तुम्हें बताना शुरू करती हैं कि और भी सूक्ष्म अहंकार हैं-धर्म के, राष्ट्र के। फिर तुम्हें और सूक्ष्म अहंकारों का पता चलता है-त्याग का, ज्ञान का। ऐसे पर्त-पर्त अहंकार काटना पड़ता है। प्याज की तरह एक के भीतर दूसरी पर्त है। और दूसरी पर्त पहले से ज्यादा गहरी है, क्योंकि वह ज्यादा केंद्र के निकट है। __और अंत में जब सारी पर्ते कट जाती हैं और प्याज में कुछ भी नहीं बचता, सिर्फ शून्य रह जाता है, तब तुम जानना कि तुम उस जगह पहुंचे जहां आत्मा का वास है। जहां अहंकार पूरा कट जाता है, वहीं तुम हो। जहां अहंकार नहीं, वहीं परमात्मा है। आखिरी प्रश्नः मैं संसार छोड़ने को तैयार हूं, लेकिन क्या आप आश्वासन देते हैं कि मैं इस तरह निश्चय ही सुख पा लूंगा? पक्का हो जाए तो मैं आज ही सब छोड़ने को राजी हं। ne ली तो बात, मैंने कभी भूलकर भी, नींद में भी किसी से नहीं कहा, सपने में भी नहीं किसी से कहा कि संसार छोड़ना, और तुम मुझसे पूछ रहे 181
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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