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________________ एस धम्मो सनंतनो और यह पागलपन सारी दुनिया में है। चीनी समझते हैं कि उनसे ज्यादा महान कोई देश नहीं है । और वैसे ही जापानी भी समझते हैं । और वैसे ही जर्मन भी समझते हैं। दुनिया में ऐसी कोई कौम नहीं है जो अपने को महान न समझती हो । कोई देश ऐसा नहीं जो अपने को महान न समझता हो। क्योंकि दुनिया में आदमी नहीं जिनको अहंकार न हो। मगर तुम बहाने खोजते हो। और बहाने ऐसे खोजते हो कि सीधे-सीधे दिखायी भी नहीं पड़ते । अब जब कोई कहता है भारत देश सबसे महान देश, तो किसी को दिखायी भी नहीं पड़ता कि वह अहंकार की घोषणा कर रहा है। जब वह कहता है झंडा ऊंचा रहे हमारा, तो तुम्हें लगता है कि इसमें कोई ऐसी गलत बात कह ही नहीं रहा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। झंडा तुम्हारा भी है वह, इसलिए तुम्हें अड़चन नहीं होती। चीनी को देखकर अड़चन होती है। तुम्हारा झंडा ऊंचा ! तब झगड़ा खड़ा होता है। लेकिन चीनी दूर है, उससे हमारी सीधी मुलाकात साफ-साफ सामने-सामने होती भी नहीं। यहां तो जो हमारा झंडा है, वह हम सबका है, इसलिए हम मजे से कहते रहते हैं । जैन मंदिर में चलती रहती है बात कि जैन-धर्म सबसे महान धर्म; कोई अड़चन नहीं। हिंदू मंदिर में चलती रहती है बात, हिंदू-धर्म सबसे महान । मस्जिद में चर्चा चलती रहती है कि इस्लाम से महान कोई धर्म है ही नहीं । ये चर्चाएं सीमाओं में चलती रहती हैं और वहां जितने लोग मौजूद हैं वे सब सिर हिलाते हैं, क्योंकि वे सब मुसलमान हैं, सब हिंदू हैं, सब जैन हैं। लेकिन जरा तुम इस सत्य को तो देखने की कोशिश करो - यही सभी लोग कह रहे हैं। अगर गधे घोड़े भी बोलते होते तो वे भी यही कहते, वे भी यही कहते कि हमसे महान कोई भी नहीं । मैंने एक बात सुनी है कि जब डार्विन ने सिद्धांत प्रतिपादित किया कि आदमी बंदरों से विकसित हुआ है, बंदरों का ही विकास है, तो आदमियों में भी विवाद चला, क्योंकि आदमियों को यह बात जंची नहीं, अखरी, कि हम बंदर से विकसित हुए हैं! इससे उनको चोट लगी। वे पहले से यही सोचते रहे थे कि भगवान ने बनाया और यह क्या मामला हुआ, एकदम भगवान... वल्दियत बदल गयी ! भगवान की जगह बंदर, एकदम वल्दियत बदल गयी ! कहां भगवान और कहां बंदर ! आदमियों में खूब विवाद चला, लोग बड़े नाराज हुए। कोई स्वीकार करने को राजी नहीं था । लेकिन मैंने सुना है, बंदरों में भी बहुत विवाद चला। और बंदर भी बहुत नाराज थे कि कौन कहता है कि आदमी हमारा विकास है ! हमारा पतन है। हम रहते वृक्षों पर, ये पतित हो गए और समझ रहे हैं विकास हो गया ! और अगर गौर से देखो तो उनकी बात में भी अर्थ तो है ही । एक बंदर से तुम्हारी टक्कर हो जाए तो समझ में आ जाए कि तुम विकसित हो कि बंदर । न छलांग लगा सकते वैसी, न एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर झूल सकते वैसे; न वैसी लोच, न वैसी ऊर्जा, न वैसी शक्ति, काहे के विकसित ! किसी तरह चश्मा लगाए और नकली दांत लगाए चले जा रहे हैं, और 180
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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