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एस धम्मो सनंतनो
चाहता हो! अब रास्ता बड़ा सूक्ष्म है। अब तो वह खुद ही अपने भीतर अचेतन में उतरे तो शायद पकड़ पाए कि उसके भीतर आकांक्षा क्या है? क्या वह दिखाना चाहता है लोगों को कि देखो, दुनिया में हुए त्यागी मगर मेरे जैसा कभी हुआ !
जैनों और बौद्धों ने महावीर और बुद्ध की त्याग की बड़ी कथाएं लिखी हैं, खूब बढ़ा-चढ़ाकर लिखी हैं। वह बढ़ा-चढ़ाकर लिखना बताता है कि जिन्होंने कथाएं लिखी हैं, उनके मन में महावीर का मूल्य नहीं था, धन का ही मूल्य था। बुद्ध का मूल्य नहीं था, धन का मूल्य था । महावीर के भक्त लिखते हैं कि महावीर के पास इतने हजार हाथी, इतने हजार घोड़े, ऐसा- ऐसा सामान था; इतने रत्न, इतने हीरे, इतने जवाहरात, वह गिनाते ही चले जाते हैं, वह संख्या बढ़ती ही जाती है— जितना शास्त्रों में जाओगे वह संख्या बढ़ती ही चली जाती है।
इतना हो नहीं सकता। इतने घोड़े, इतने हाथी महावीर जिस छोटे से राज्य में पैदा हुए, वे उसमें खड़े भी नहीं हो सकते थे । और अगर इतने हाथी-घोड़े खड़े हो जाते तो आदमियों की जगह न बचती खड़े होने की। और इतना छोटा राज्य था महावीर के पिता का - एक छोटी तहसील समझो। महावीर के पिता कोई महा सम्राट नहीं थे। इतना धन हो नहीं सकता था । इसका कोई उपाय नहीं है। अगर महावीर पैदा न हुए होते तो महावीर के पिता का नाम किसी को कभी पता भी नहीं चलता ।
और वही हालत बुद्ध की भी थी। अगर बुद्ध पैदा न होते तो बुद्ध के बाप का नाम कभी किसी को पता न चलता। उनके पास कुछ ज्यादा था भी नहीं। छोटे से राज्य थे। बुद्ध के समय भारत में दो हजार राज्य थे। अगर बुद्ध का राज्य पूरे भारत पर होता, तो भी इतने हाथी-घोड़े नहीं हो सकते थे जितने गिनाए हैं। पूरे भारत में इतने हाथी-घोड़े नहीं थे । और दो हजार राज्य थे ! छोटा-मोटा राज्य था ।
लेकिन भक्तों ने इतने बढ़ा-चढ़ाकर क्यों लिखा ? बढ़ा-चढ़ाकर इसलिए लिखा कि अगर इतना न हो तो फिर छोड़ा ही क्या ? तो त्याग छोटा हो जाता है। त्याग को बड़ा बताने के लिए पहले भोग बड़ा करके बताना पड़ा कि इतना - इतना था, सब छोड़ दिया, क्या गजब का त्याग था! मगर ध्यान रखना, त्याग भी नापा जा रहा है भोग से। त्याग भी नापा जा रहा है धन से । आदमी का मन बहुत रुग्ण है। यही तो कारण है कि जैनों के सब तीर्थंकर राजाओं के बेटे हैं । बुद्ध राजा के बेटे, हिंदुओं के सब अवतार राजा के बेटे । यह भी जरा अजीब सी बात है। हिंदुस्तान में कभी भी कोई गरीब का बेटा, कोई मध्यवर्गीय बेटा, कोई साधारणजन का, जो राजपुत्र नहीं था, तीर्थंकर नहीं हो सका। क्या कारण रहा होगा ? क्या अड़चन रही होगी ?
बात साफ है। त्यागी तो महावीर जैसे और भी बहुत हुए हैं, लेकिन उनका त्याग जनता नहीं मानेगी । है ही नहीं तुम्हारे पास तो छोड़ा क्या ? त्यागी तो बहुत हुए बुद्ध जैसे, लेकिन जनता उनको मानेगी नहीं। वह कितने ही सब छोड़कर नग्न खड़े हो गए हों, लेकिन लोग पूछेंगे, था क्या? पहले था क्या? पहले की तो बताओ। बैंक
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