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मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव
उन्होंने कहा, वह दिखला रहा है अकड़, पूरी राजधानी सजायी गयी है, रास्तों पर मखमली कालीन बिछाए गए हैं, सारे नगर में दीए जलाए गए हैं, सुगंध छिड़की गयी है, फूलों से पाट दिए हैं रास्ते, सारा नगर संगीत से गुंजायमान हो रहा है। वह तुम्हें दिखाना चाहता है कि देख, तू क्या है, एक नंगा फकीर ! और देख, मैं क्या हूं ! फकीर ने कहा, तो हम भी दिखा देंगे !
वे यात्री तो चले गए। फिर सांझ जब फकीर पहुंचा और राजा, सम्राट द्वार तक लेने आया उसे नगर के - अपने पूरे दरबार के साथ आया था। उसने जरूर राजधानी खूब सजायी थी, उसने तो सोचा भी नहीं था कि यह बात इस अर्थ में ली जाएगी। उसने तो यही सोचा था कि फकीर आता है, बचपन का साथी, उसका जितना अच्छा स्वागत हो सके ! शायद छिपी कहीं बहुत गहरे में यह वासना भी रही होगी – दिखाऊं उसे — मगर यह बहुत चेतन नहीं थी । इसका साफ-साफ होश नहीं था । गहरे में जरूर रही होगी। हमारी गहराइयों का हमीं को पता नहीं होता। जब फकीर आया तो फकीर नंगा तो था ही, उसके घुटने तक पैर भी कीचड़ से भरे थे।
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सम्राट थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि वर्षा तो हुई नहीं । वर्षा के लिए तो लोग तड़फ रहे हैं। रास्ते सूखे पड़े हैं, वृक्ष सूखे जा रहे हैं, किसान घबड़ा रहे हैं। वर्षा होनी चाहिए और हो नहीं रही है, समय निकला जा रहा है। इतनी कीचड़ कहां मिल गयी कि घुटने तक कीचड़ से पैर भरे हैं !
लेकिन सम्राट ने वहां द्वार पर तो कुछ न कहना उचित समझा। महल तक ले आया। और वह फकीर उन बहुमूल्य कालीनों पर - लाखों रुपयों के कालीन थे— उन पर वह कीचड़ उछालता हुआ चला । जब राजमहल में प्रविष्ट हो गए और दोनों अकेले रह गए तो सम्राट ने पूछा कि मार्ग में जरूर कष्ट हुआ होगा, इतनी कीचड़ आपके पैर में लग गयी। कहां तकलीफ पड़ी? क्या अड़चन आयी ?
तो उसने कहा, अड़चन ? अड़चन कोई भी नहीं । तुम अगर अपनी दौलत दिखाना चाहते हो तो हम भी अपनी फकीरी दिखाना चाहते हैं । हम फकीर हैं। हम लात मारते हैं तुम्हारे बहुमूल्य कालीनों पर । सम्राट हंसा और उसने कहा, मैं तो सोचता था तुम बदल गए होओगे, लेकिन तुम वही के वही, आओ गले मिलें। हम जब अलग हुए थे स्कूल से, तब से और अब में कोई फर्क नहीं पड़ा है। हम एक ही साथ, हम एक जैसे ।
अहंकार के रास्ते बड़े सूक्ष्म हैं। फकीरी भी दिखलाने लगता है। इससे थोड़े सावधान होना जरूरी है। और जब अहंकार परोक्ष रास्ते लेता है तो ज्यादा कठिन हो जाता है जागना। सीधे-सीधे रास्ते तो बहुत ठीक हैं। एक आदमी ने बड़ा महल बना लिया, साफ दिखायी पड़ता है कि वह दिखाना चाहता है नगर को कि मैं कौन हूं। एक आदमी बड़ी कार खरीद लाया, वह दिखाना चाहता है। लेकिन एक आदमी ने महल त्याग कर दिया और सड़क पर नग्न खड़ा हो गया; कौन जाने वह भी दिखाना
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