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________________ एस धम्मो सनंतनो चढ़ाने में भी दौड़ है, चढ़ाने में भी होड़ है। चढ़ाने में भी दूसरे को हराना है और जीतना है। यह तो अहंकार ही हुआ। यह पागलपन छोड़ो। मेरे पास तो बैठकर तुम इतना समझ जाओ कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है, बात हो गयी। फिर दूसरी बात भी तुम्हें समझ में आ जाएगी। पहले यह समझ में आ जाए कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, तो फिर दूसरी बात भी समझ में आ जाएगी कि मैं भी कुछ नहीं हूं। यह शून्य आकाश जिस दिन भीतर प्रगट होता है, उस दिन तुम चढ़ गए। उस दिन पहुंच गए, समर्पण हो गया। ___ इसमें दीनता क्या है? यह तो स्थिति है। किसके पास क्या है? इसको असह्य क्यों कर रहे हो? तुम देखते होओगे कि दूसरे चढ़ाते हैं-कोई धन ले आता, कोई बुद्धि ले आता, कुछ यह ले आता, कुछ वह ले आता। अब कीर्ति सोचता होगा, मैं क्या लाऊं? कहां से लाऊं? मेरे पास कुछ भी नहीं है। तुम कुछ भी नहीं हो, इसी भाव में रम जाओ, बस पर्याप्त हो गया। तुम उनसे आगे निकल जाओगे जो धन चढ़ा गए। तुम उनसे आगे निकल जाओगे जो कुछ चढ़ा गए। क्योंकि आगे जाने का अर्थ एक ही होता है कि तुम अपने भीतर चले जाओ-और आगे जाने का कोई अर्थ नहीं होता। इसमें परेशान होने की जरा भी जरूरत नहीं है। हमारा अहंकार बड़ा सूक्ष्म है। यह बड़ी-बड़ी तरकीबें खोजता है, बड़ी सूक्ष्म तरकीबें खोजता है। अब ऊपर से देखने पर ऐसा ही लगेगा कि यह तो बड़ी अच्छी बात पूछी कीर्ति ने, इसमें कुछ बुराई क्या है? ___इसमें बुराई है। इसमें गहरी बुराई की जड़ है। यह दीनता तुम्हारे अहंकार को ही अखर रही है। इतना ही देखो कि मेरे पास कुछ नहीं है, अब करूं क्या! बात खतम हो गयी। किसके पास कुछ है! फिर चढ़ाने की कोई जरूरत भी कहां है! कोई प्रयोजन भी नहीं है। लेकिन, आमतौर से कुछ भी हो, किसी न किसी दरवाजे से अहंकार फिर प्रविष्ट हो जाता है; पीछे के दरवाजे से आ जाता है। ___ मैंने सुना है-एक सूफी कहानी—एक सम्राट विश्वविजेता हो गया। तब उसे खबर मिलने लगी कि उसके बचपन का एक साथी बड़ा फकीर हो गया है। दिगंबर फकीर हो गया है। नग्न रहने लगा है। उस फकीर की ख्याति सम्राट तक आने लगी। सम्राट ने निमंत्रण भेजा कि आप कभी आएं, राजधानी आएं; पुराने मित्र हैं, बचपन में हम साथ थे, एक साथ एक स्कूल में पढ़े थे, एक फट्टी पर बैठे थे; बड़ी कृपा होगी आप आएं। ___फकीर आया। फकीर तो पैदल चलता था, नग्न था, महीनों लगे। जब फकीर ठीक राजधानी के बाहर आया तो कुछ यात्री जो राजधानी के बाहर जा रहे थे, उन्होंने फकीर से कहा कि तुम्हें पता है, वह सम्राट अपनी अकड़ तुम्हें दिखाना चाहता है। इसीलिए तुम्हें बुलाया है। फकीर ने कहा, कैसी अकड़! क्या अकड़ दिखाएगा? तो 176
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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