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________________ मृत्युबोध के बाद ही महोत्सव संभव की पोंगरी। अगर मुझसे कुछ होता भी है तो वह परमात्मा का, मेरा क्या? उपकरण मात्र। वह जो चाहे, करा ले, न चाहे, न कराए। चाहे राजा बना दे और चाहे प्यादा बना दे। जो उसकी मर्जी। मर्जी उसकी। खेल उसका। मैं तो एक कठपुतली। धागे उसके हाथ में हैं। जैसा नचाता है, नाच लेता हूं। इसमें मेरी अकड़ क्या? ऐसा भाव तुम्हारे भीतर गहरा होता चला जाए तो धीरे-धीरे तुम पाओगे, नयी ऊर्जा न मिली अहंकार को और पुरानी ऊर्जा धीरे-धीरे शून्य में लीन होने लगी। एक दिन अहंकार गिर जाता है, जैसे ताश के पत्ते गिर जाते हैं। जैसे ताश के पत्तों से बनाया हुआ मकान गिर जाता है। जरा सा ध्यान का झोंका चाहिए और यह मकान गिर जाएगा। पांचवां प्रश्नः मैं अनुभव करता हूं कि मेरे पास आपके चरणों पर चढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं है, और यह दीनता असह्य है। पछा है कीर्ति ने। अभी जो मैं कह रहा था, उसे खयाल में लो। यह दीनता भी अहंकार का ही रूप है। तुम यह मत सोचना कि यह दीनता कोई बहुत अच्छी बात है। यह अहंकार की ही छाया है। चढ़ाने की जरूरत क्या है? मेरे चरणों में कुछ चढ़ाने की जरूरत क्या है? मेरे पास रहकर तुम शून्य होना सीख लो, बस पर्याप्त है। सब चढ़ गया। अपना अहंकार ही चढ़ा दो, बस बहुत हो गया। मगर तुम कहते हो कि 'मैं अनुभव करता हूं कि मेरे पास आपके चरणों पर चढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं है।' । यह कुछ भी नहीं का बोध ही तो असली बात है। किसके पास कुछ है! किसी के पास कुछ भी नहीं है। तुम समझते हो कोई आदमी सौ रुपये का नोट रख गया तो कुछ रख गया। है क्या सौ रुपये के नोट में! कागज का टुकड़ा है। ऐसे ही पड़ा रह जाएगा। मैं भी चला जाऊंगा, वह भी चले जाएंगे। इसको न मैं ले जा सकता, न वह ले जा सकते, तो चढ़ा क्या गए? और इसमें तुम्हारा क्या था? तुम नहीं आए थे तब भी यह नोट यहां था—यहीं का था, यहीं से उठाकर चढ़ा दिया, चढ़ाया क्या? तुम्हारे पास कछ नहीं है, यह बात तम्हें पीड़ा क्यों दे रही है? और यह दीनता तुम कहते हो असह्य है-क्यों? किसको असह्य हो रही है? अहंकार का भाव है। अहंकार कुछ चढ़ाना चाहता है। अहंकार चढ़ाना ही नहीं चाहता, वह दूसरों को भी हराना चाहता है। कहता है—अच्छा, तुमने सौ का नोट चढ़ाया! लो, मैं पांच सौ का चढ़ाता हूं। कर दिया ठिकाने, लगा दिया रस्ते पर तुम्हें, भूल गए अकड़! बड़े चढ़ाने चले थे! 175
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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