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एस धम्मो सनंतनो
आंख भी सपना दिखायी पड़ने लगता है। वही मृगमरीचिका है। तब तुम्हारा सपना इतना प्रबल हो गया कि तुम सत्य को झुठला देते हो और उसके ऊपर सपने को आरोपित कर लेते हो।
हम सबको ऐसा अनुभव है, हमने चाहे समझा हो चाहे न समझा हो; जो नहीं है, उसको भी हम देख लेते हैं। किसी स्त्री से तुम्हारा प्रेम है, तुम्हें उसकी क्षुधा है, तुम्हें उसकी प्यास है, उस स्त्री को तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन तुम उसकी भाव-भंगिमा में, उसके उठने-बैठने में देख लोगे इशारा कि उसको तुमसे प्रेम है। वह तुमसे अगर हंसकर भी बोल लेगी-हंसकर वह सभी से बोलती होगी-अगर वह तुम्हें कभी घर चाय पिलाने के लिए बुला लेगी, तो तुम समझोगे कि उसे प्रेम है। तुम इस छोटी सी बात पर अपनी पूरी वासना को आरोपित कर दोगे। राह पर रुककर तुमसे बात कर लेगी तो तुम समझोगे कि उसको भी मेरी आकांक्षा है।
__ हम प्रतिपल ऐसा करते हैं। जो नहीं है, उसको देख लेते हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि वह हो। जो है, उसको झुठला देते हैं, क्योंकि हम चाहते नहीं कि वह हो। ऐसे हम जीवन को झूठ करके जीते हैं। क्षणभर को दिख भी जाए, इससे कुछ फर्क न पड़ेगा। सपना तो टूटेगा। सपनों में सुख कहां! सुख तो शाश्वतता में है।
इसलिए बुद्ध कहते हैं-एस धम्मो सनंतनो। जो सदा रहे वही धर्म है। सनातन धर्म का स्वभाव है।
वैशाली में दुर्भिक्ष हुआ। वैशाली के पास ही राजगृह में भगवान ठहरे हैं, लेकिन जब तक दुखी न थे लोग तब तक उन्हें निमंत्रित न किया था।
ये कथाएं तो प्रतीक-कथाएं हैं। यही तो हमारी दशा है। जब सब ठीक चलता होता, कौन मंदिर जाता, कौन पूजा करता, कौन प्रभु को स्मरण करता! जब तुम जीत रहे होते, तब तो परमात्मा की याद भूल जाती है; जब तुम हारने लगते, तब तुम साधु-सत्संग खोजते। जब जीवन में विषाद पकड़ता, जब तुम्हारे किए कुछ भी नहीं होता, तब तुम कोई सहारा खोजते, तब तुम राम-राम जपते, तब तुम माला पकड़ते, तब तुम ध्यान में बैठते। और खयाल रहे, दुख में ध्यान करना बहुत कठिन है। दुख बड़ा व्याघात है। दुख बड़ा विघ्न है। सुख में ध्यान करना सरल है, लेकिन सुख में कोई ध्यान करता नहीं।
सुख की तरंग पर अगर तुम ध्यान में जुड़ जाओ-मन सुख से भरा है, मन प्रफुल्लित है, मन ताजा है, युवा है—इस उत्साह के क्षण को अगर तुम ध्यान में लगा दो, तो जो ध्यान वर्षों में पूरा न होगा, वह क्षणों में पूरा हो सकता है। __इसलिए मेरी अनिवार्य शिक्षा यही है कि जब सुख का क्षण हो, तब तो चूकना ही मत। तब तो सुख के क्षण को ध्यान के लिए समर्पित कर देना। तब भगवान को याद कर लेना। वह याद बड़ी गहरी जाएगी। वह तुम्हारे अंतस्तल को छू लेगी। वह तुम्हारे प्राणों की गहराई में प्रतिष्ठित हो जाएगी। तुम मंदिर बन जाओगे।